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________________ १. वेदान्त में प्रतिपादित "तत्वमसि महावाक्य" का मूल छान्दोग्य उपनिषद् में प्राप्त होता है। इसमें उद्दालक मुनि ने श्वेतकेतु को "तत्वमसि' का उपदेश दिया है- 'स च एषोऽणि मैतदात्म्यमिदं सर्व तत् सत्यं स आत्मा तत्वमसिश्वेतकेतोइति (छान्दो० ६/६/१२–३) उपनिषदों में मुख्य रूप से ब्रह्म के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। बृहदा० उपनि० में कहा गया है कि वह न तो स्थूल है, न सूक्ष्म है, न लघु है और न गुरू । उसमें न रस है, न गन्ध न उसके पास आँख है और न ही कान है वह नित्य है उसमें आकाश ओत-प्रोत है। अतः निर्गुण ब्रह्म का निषेधात्मक वर्णन उपलब्ध होता है । अरसमगन्धमचक्षुष्कमश्रोत्रम् ‘अस्थूलमनण्वहस्वमदीर्घम -अस्मिन्नु खल्वेक्षरे गागर्याकाश ओतश्चप्रोतश्च । (बृहदा० ३-८-८ से ।।) उपनिषदों का मुख्य विवेच्य विषय आत्मा या ब्रह्म का स्वरूप है । "ब्रह्म" शब्द 'बृह' धातु से बना है जिसका अर्थ " व्यापक " है । "बृहन्तो हि अस्मिन् गुणा इति ब्रह्म" इस व्युत्पत्ति के अनुसार "ब्रह्म" शब्द से तात्पर्य उस परम सत्ता से है जिसकी सत्ता एवं अनन्त शक्ति पर विश्व के सभी पदार्थों का अस्तित्व एवं संचालन निर्भर है। कठोपनिषद् के अनुसार- यह एक पुरातन वृक्ष है जिसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं और शाखाएं नीचे की ओर जाती है। वह प्रकाश का पुञ्ज उज्जवल ब्रह्म है जो अमर है जगत की सभी चेतन-अचेतन वस्तुएं उसी के अन्दर हैं उसके बाहर नहीं है । तैत्तरीयोपनिषद् में ब्रह्म को सत्य, ज्ञान एवं अनन्त कहा गया है'सत्यंज्ञानमनन्तं ब्रह्म' । (तैत्तिरीयो०- २/१) । उपनिषदों में ब्रह्म के दो लक्षणों का विवेचन किया गया है- १-तटस्थ लक्षण, २- स्वरूप लक्षण | जगत का कारण होना ब्रह्म का तटस्थ लक्षण है ब्रह्म जगत की उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का निमित्त एवं उपादान कारण है । 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' और 'विज्ञानमानन्दं 143
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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