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________________ उपदेश के लिये श्रद्धापूर्वक बैठना। कई उपनिषदों से यह मालूम होता है कि रहस्यात्मक इसलिये था जिससे कि अपात्र के कान में न पड़ने पाये। श्री शङ्कराचार्य ने तैत्तिरीय 'उपनिषद्' के भाष्य में 'उपनिषद्' शब्द का अर्थ 'ब्रह्मज्ञान' बतलाते हैं। इस ब्रह्मज्ञान से ही मनुष्य को जन्म और मरण के बन्धन से मोक्ष प्राप्त होता है इस मोक्ष का ज्ञान ही ब्रह्मज्ञान है। उपनिषद् का सद् धातु तीन अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है- १-विशरण- नाश होना, २-गति-प्राप्त होना, ३-अवसादन- शिथिल करना। 'आचार्य बलदेव उपाध्याय' ने भारतीय दर्शन में लिखा है कि "उपनिषद का अर्थ अध्यात्मविद्या है। जिस विद्या के अध्ययन से दृष्टानुश्रविक विषयों से वितृष्ण मुमुक्षजनों की संसार बीजभूत अविद्या नष्ट हो जाती है और जो विद्या उन्हें ब्रह्म की प्राप्ति करा देती है तथा जिसके परिशीलन से गर्भवासादि दुःखवृन्दों का सर्वदा शिथिलीकरण हो जाता है, वही अध्यात्मविद्या उपनिषद है"।' उपलब्ध उपनिषदों की सूची का विवरण मुक्तिकोपनिषद् से प्राप्त होता है। साधारणतः उपनिषदों की सं० १०८ तक मानी जाती है। इनमें से लगभग दस उपनिषदें मुख्य हैं- ईश; केन, प्रश्न, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, मुण्डक, छान्दोग्य और बृहदारण्यक । उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में है। उपनिषदों का रचयिता कोई व्यक्ति विशेष नहीं है क्योंकि एक ही उपनिषद में कई शिक्षकों का नाम आता है जिससे यह सिद्ध होता है कि उपनिषद् एक लेखक की कृति नहीं है। उपनिषद् दार्शनिक और धार्मिक विचारों से भरे हैं दार्शनिक पक्ष ही उपनिषद् कीअनमोल निधि है। विषय की दृष्टि से सम्पूर्ण वेदों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है- कर्म, उपासना, ज्ञान । कर्म का विषय संहिता और ब्राह्मण है। उपासना का -- 'बल्देव उपा०- भा० दर्शन- पृ० ३७ 139
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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