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जाती है। ४– तैत्तरीय ब्राह्मण - यह कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा का ब्राह्मण है इसमें तीन भाग है जिन्हें काण्ड कहते हैं। इसके प्रथम काण्ड में बाजपेय, सोम, राजसूय आदि यज्ञों का वर्णन है— इसके द्वितीय काण्ड में अग्निहोत्र, उपहोम आदि का विवरण है तृतीय काण्ड में नक्षत्रेष्टि का वर्णन है । पुरुषमेध यज्ञ का भी वर्णन इसमें मिलता है। ५-ताण्डप ब्राह्मण— यह सामवेदीय ब्राह्मण है । सामवेद के ११ ब्राह्मणग्रन्थ प्राप्त होते हैं। इनमें ताण्ड्यशाखा का पंचविश ब्राह्मण मुख्य हैं। इसमें कुल २५ अध्याय हैं। इसका मुख्य वर्णित विषय सोमयाग है । ६ - गोपथ ब्राह्मण - यह अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण है इसके रचयिता गोपथ ऋषि माने जाते हैं। इसके दो भाग हैं १ – पूर्वभाग या पूर्वगोपथ, २–उत्तर भाग या उत्तर गोपथ । पूर्वभाग में पांच प्रपाठक या अध्याय है और दूसरे में छः अध्याय हैं- पूर्वभाग के वर्णित विषय में ओंकार और गायत्री का महत्व, ब्रह्मचारी के कर्तव्य, ऋत्विजों के कार्य, पुरूषमेध, अश्वमेध, अग्निष्टोम आदि का वर्णन उल्लेखनीय है । इसके उत्तर भाग में विविध यज्ञों और उनसे सम्बद्ध आख्यायिकाओं का वर्णन है । आरण्यक ग्रन्थ
वैदिक साहित्य में ब्राह्मण ग्रन्थों के समान आरण्यकों का भी मुख्य स्थान है। आरण्यक ग्रन्थ उपनिषदों के पूर्वरूप है सायण ने तैत्तरीय और ऐतरेय आरण्यकों के भाष्य में "आरण्यक " का अर्थ किया है- 'जो अरण्य में पढा या पढाया जाय तो उसे आरण्यक कहते हैं ।'
आरण्यकों को 'रहस्य ग्रन्थ' के नाम से भी जाना जाता है।' इसमें आत्मविद्या, तत्व चिन्तन एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन है। ये आरण्यक उन लोगों के लिये था जो गृहस्थ जीवन से निवृत्त होकर वानप्रस्थ जीवन ग्रहण कर लिये थे। एकतरफ जहां ब्राह्मण ग्रन्थों का प्रतिपाद्य विषय यज्ञ है वहां आरण्यक का मुख्य प्रतिपाद्य विषय
' अरण्याध्ययनादेतद् आरण्यकमितीर्यते । अरण्येतदधीयतेत्येवं वाक्यं प्रलक्ष्यते ।। (तैत्ति० आ० भा० श्लोक ६)
* गोपथ ब्राह्मण (२-१०) और बौधायन धर्मसूत्र भाष्य (२ -८-३) में रहस्य ग्रन्थ के नाम से उल्लिखित है।
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