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३. श्रद्धा से तात्पर्य है- शास्त्रों के प्रति पूर्ण निष्ठा। ४. समाधान -चित्त को ज्ञान के साधन में लगाया जाता है। ५. उपरति- साधक विक्षेपकारी कार्यों से अपने को अलग करता है।
६. तितिक्षा- शीतोष्ण-द्वन्द सहन करने की शक्ति । (४) मुमुक्षुत्त्व- साधक को मोक्ष की प्राप्ति के लिये दृढ़ ससंकल्प रहना चाहिये। साधन चतुष्टय के अनन्तर साधक को श्रवण, मनन, निदिध्यासन करना चाहिये। मोक्ष की अवस्था में जीव- ब्रहम में लीन हो जाता है।
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