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________________ होता है-"प्राप्तेशरीर भेदे, चरितार्थत्वात प्रधानविनिवृतौ। ऐकान्तिकमात्यन्तिकमुभयं कैवल्यमाप्नोति।।" (सां० का० ६८) ४. योग दर्शन सभी भारतीय दर्शनों के बीच योग दर्शन का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दर्शन के मुख्य प्रणेता महर्षि पतंजलि माने जाते हैं। इसलिये इसे "पातंजल दर्शन" भी कहा जाता है। इस दर्शन का मुख्य ग्रन्थ "योगसूत्र" या "पातंजलसूत्र" है जो चार भागों में विभक्त है- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद। "योग सूत्रों पर व्यासमुनि का भाष्य है जिसे 'व्यासभाष्य' या 'योगभाष्य' भी कहा जाता है। व्यास भाष्य पर दो टीका (व्याख्याएं) है- १– वाचस्पतिमिश्र की योगतत्व वैशारदी है। २विज्ञानभिक्षु की योग वार्तिक अति प्रसिद्ध है। 'योग' का महत्व स्पष्ट रूप से वेद, उपनिषद, स्मृति, पुराण आदि सभी ग्रन्थों में वर्णित मिलता है। जैसा कि ऋग्वेद में कहा गया है- 'योगे-योगेतवस्तरं वाजे वाजे हवामहे। सखायइन्द्रमूतये।।' निश्चतरूप से इसमें उल्लिखित "योग" शब्द योग साधना का ही अर्थ देता है। योग की महत्ता और उपयोगिता कावर्णन उपनिषदों में भी हुआ है- कठोपनिषद में आत्मज्ञान के एकमात्र साधन के रूप में योग को स्वीकार किया गया है- अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्षशोकौ जहाति।। वृहदारण्य उपनिषद में भी आत्मज्ञान के लिये समाधि को अनिवार्य रूप से प्रतिपादित किया गया है। श्वेताश्वेतर उपनिषद में भी योग की मुक्तकंठ से प्रशंसा की गयी है-'योग प्रवृत्तिं प्रथमां वदन्ति। सभी भारतीय दर्शनों के बीच योग दर्शन का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शङ्कराचार्य और वाचस्पति मानते हैं कि हिरण्यगर्भापरनामा कपिल ने सर्वप्रथम 'सांख्य योग' को उपदेश दिया। सांख्य तथा योग 'कठोपनिषद १/२/२१ * तस्मददेवं विच्छान्तो दान्त उपरतास्तितीक्षु.समाहिते भूत्वाऽऽत्मन्येवात्मानं पश्यति(बृहदा० ४/४/२३)तस्मादेवं । 'श्वेता० उप० २६१२ 104
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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