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समय पुनः परमाणुओं के रुप में विघटित हो जाती हैं। इस प्रकार शङ्कर ने वैशेषिक के पदार्थों को मात्र मान्यता कहा है। सांख्यदर्शन
षड्आस्तिक दर्शनों में सांख्य का महत्वपूर्ण स्थान है। भारतीय दर्शन की आस्तिक विचारधारा में सांख्य दर्शन सर्वाधिक प्राचीन है। इस दर्शन के प्रतिष्ठापक आचार्य महर्षि कपिल माने जाते हैं। इनके नाम का उल्लेख उपनिषदों, गीता, महाभारत के शांतिपर्व आदि में भी मिलता है। कपिल वैदिक काल के मुनि थे इसमें कोई सन्देह नहीं है क्यों कि कपिल का उल्लेख श्रुतियों में मिलता है। श्वेता०उपनि० में कहा गया है - "ऋषि प्रसूतं कपिलम"।
भगवतगीता में श्री कृष्ण ने कपिल को अपनी विभूतियों में गिनाया है- “सिद्वानां कपिलो मुनिः”। इस प्रकार सांख्य दर्शन की प्रचीनता सिद्ध होती है। शंकराचार्य ने अपने भाष्य में सांख्य को वेदान्त का "प्रधान मल्ल" प्रमुखप्रतिपक्षी के रूप में उल्लेख किया है। महर्षि वादरायण ने 'ब्रह्मसूत्र' में तथा आचार्य शंकर ने अपने ब्रह्मसूत्र शाङ्कर भाष्य के तर्कपाद में सांख्य का युक्तियों के द्वारा खण्डन करने के अलावा श्रुतिमूलक खण्डन भी किया है।
संख्यदर्शन का प्रसिद्ध ग्रन्थ 'सांख्यप्रवचनं सूत्र' है इसे कपिल द्वारा प्रणीत माना जाता है किन्तु इसको मानने में विद्वान एकमत नहीं हैं। क्यों कि शङ्कराचार्य प्रभृति अन्य आचार्यों ने इस ग्रन्थ का नामोल्लेख तक नहीं किया है। कुछ विद्वान इसे १५वीं शताब्दी की विज्ञानभिक्षु की रचना मानते हैं। ईश्वरकृष्ण की 'सांख्यकारिका' सांख्य का प्राचीनतम् ग्रन्थ है। वाचस्पति मिश्र ने 'सांख्यकारिका' पर अपनी प्रसिद्ध टीका 'सांख्य-तत्व-कौमुदी' लिखी। कपिल की दो रचनाओं का पता चलता है, 'तत्वसमास तथा सांख्यसूत्र'। 'तत्वसमास' केवल २२ छोटे सूत्रों का समुच्चय मात्र है। सांख्यसूत्र में ६ अध्याय हैं और सूत्र ५३७ हैं। कपिल के शिष्य 'आसुरि' का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में