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आश्रय होने की अपनी सहज शाश्वत योग्यता के कारण समस्त अचेतन पदार्थों की अपेक्षा उत्कृष्ट रूप में विद्यमान रहता है।"
परमाणुकारणवाद वैशेषिक का परमाणुकारणवाद सांख्य के सत्कार्यवाद के विपरीत असत्कार्यवाद को मानता है। इसे 'आरंभवाद' भी कहते हैं। पदार्थ की उत्पत्ति से तात्पर्य यह है- परमाणु से संयोग और विनाश का अर्थ है- परमाणु से संयोग-विभाग। परमाणु नित्य होते हैं। प्रत्येक नित्यपरमाणु में “विशेष" होता है जो उसका नित्य और व्यावर्तक होता है। कणाद ने यह माना है कि यह ब्रह्माण्ड शाश्वत परमाणुओं का एक ऐसा ढांचा है जो कर्म के अदृष्ट सर्वव्यापी नैतिक नियम द्वारा परिचालित और विकसित होता है।
इस प्रकार वैशेषिक दर्शन में जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के प्राथमिक परमाणु हैं वह शाश्वत हैं किसी ने इसका निर्माण नहीं किया है। किन्तु इन परमाणुओं के योग
और सम्मिश्रण से बनी वस्तुएं अपने स्वभाव के कारण ही विनाशशील और विघटनशील है अतः अशाश्वत हैं। जैसे घड़ा- उसके भले ही असंख्य टुकड़े कर दिये जाय किन्तु उसके परमाणुओं को कभी नष्ट नहीं किया जा सकता है। जो अनन्त काल से वर्तमान
शङ्कराचार्य ने अपने ब्रहमसूत्र शाङ्कर भाष्य १/१२ में वैशेषिक सिद्धान्त को संक्षेप में लिखा है- 'सामान्यतः हम कह सकते हैं कि सम्पूर्ण में अर्न्तनिहित अंगों का निर्माण संयुति के फलस्वरुप होता है। हम कह सकते हैं कि वे सभी वस्तुएं जो विभिन्न अंगों अथवा चार पदार्थों- पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के मिलने से बनी हैं जैसेपर्वत और सागर, वे सब चार प्रकार के परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के संयोगों का परिणाम हैं। इन वस्तुओं को हम विभिन्न अंगों के सम्पूर्ण रुप मान सकते हैं जो अन्ततः परमाणुओं से उत्पन्न मानी जा सकती हैं तथा जो इस ब्रह्माण्ड के विघटन के
' भारतीय दर्शन की समस्याएं - परिसंवाद से तैयार पृष्ठ- ३६ प्रकाशन- राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी जयपुर।
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