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सिपकर्म-सिद्धि भी नही पाया जाता है । इसलिये स्त्री को श्रेष्ठ वाजीकरण, प्रहपिणी-वृष्य तथा श्रेष्ठतम वाजीकर माना गया है । वृप्यतम स्त्री के लक्षणो को बतलाते हए आचार्य ने लिखा है-"जो स्त्री पवती, युवती, कामशास्त्रोक्त शुभ लक्षणों से युक्त, मन को प्रिय लगने वाली तथा काम शास्त्र में शिक्षिन हो-वृष्यनमा स्त्री पहलाती है । स्वभाव से ही युवती स्त्री वृष्य होती है और पुरुष के आकर्षण का कारण बनती है।
स्त्रियों में धर्म, अर्थ, काम प्रतिष्ठिन है । वह लक्ष्मीस्त्रन्पा होती है। उसमें सम्पूर्ण लौकिक यश एवं कीति निहित है। सन्तान की उत्पत्ति भी स्त्री पर हो आश्रित है। इसीलिये इनमें एन्प को विशेष प्रीति का होना स्वाभाविक है। अपने चरित्र, नंतान. कल मर्यादा, वंगपरम्पग तथा अपनी अपनो रक्षा स्त्री की रक्षा करने से ही संभव है । सम्नु, जाया या स्त्री की रक्षा सदैव करनी चाहिये ऐसा स्मृति भी कहती है। ।
बाजीकरणमयं च क्षेत्रं स्त्री या प्रदर्पिणी । दृष्टा ह्येकैकयोऽप्यर्थाः परं प्रीतिकगः स्मृताः ।। किं पुनः न्त्रीशरीरे ये संघातेन व्यवस्थिताः । न्त्रीषु प्रीतिविगेपेण स्त्रीप्वपल्यं प्रतिष्ठितम् ॥ धर्मार्थ स्त्री लक्ष्मीश्च श्रीपु लोकाः प्रतिष्ठिताः। सुल्या यौवनत्था या लक्षणैर्या विभूपिता ।।
या वश्या शिक्षिता या च सा श्री वृष्यतमा मता । (च. चि २) स्वा प्रसूति चरित्रं च कुलमात्मानमेव च स्वं च धर्म प्रयत्नेन जाया पक्षन् हि क्षति ।। (मनु.)
वृप्य स्त्री का वर्णन चरक तथा वाग्मट में उत्कृष्ट कोटि का पाया जाता है। संक्षेप मै वाग्मट के अनुसार यहाँ पर उद्धरण दिया जा रहा है । जिसका नाम भी हृदय को बानन्द देने वाला हो, जिमके देखने में कभी तृप्ति नही होती हो, जो सब इन्द्रियो को बीचने के लिये पागरूप हो, जो पति के अनुकूल व्रत में दीक्षित हो, कला विलाम के अगों तथा वय मे विभूपित हो, पवित्र, लज्जागील, एकान्त में प्रगम एवं प्रिय बोलनेवाली हो, जिसकी कामवासना पति के समान हो, ऐमी स्त्री पुरुष के लिये परम वृप्य या वाजीकर होती है।
इसके अतिरिक्त कामसूत्र में वर्णित निर्दोप, पापरहित ऐमो• रनिचर्या को जानने वाली स्त्री जो देश-काल-बन गौर यक्ति के अनुरूप एवं आयुर्वेद शास्त्र के नम्पर्ण रनिचर्या के अनुकूल हो, ऐसी स्त्री भी उत्तम वृप्य होती है ।