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चतुर्थ खण्ड : बयालीसवाँ अध्याय ६६३ है जितना पहले किमी युग मे रहा होगा । एतदर्थ वाजीकरण तन्त्र की सार्थकता तथा उसकी उपयोगिता आज भी कम नही हो पाई है। आज भी उसको उपादेयता अक्षुण्ण बनी हुई है केवल एक प्रतिवन्ध के साथ कि सतति' की औसत वृद्धि न होवे । एतदर्थ सतति-नियामक विधियो के साथ-साथ वाजीकरण का विधान सर्वथा और सर्वदा युक्तियुक्त है ।
सामान्य वाजीकर द्रव्य-बहुत प्रकार के आहार-विहार, आचार एवं परिस्थितियां वाजीकरण के रूप में होती है । उदाहरणार्थ, अनेक प्रकार के चित्रविचित्र भोजन, विविध प्रकार के पीने के पदार्थ, सगीत, कान को प्रिय लगर्ने वाले मधुर वचन, त्वचा को स्पर्श से प्रिय लगने वाले वस्त्र-स्पर्श, आभूषणादि, चन्द्रमायुक्त रात्रि, नवयौवना स्त्रो, कान-मन को हरने वाले गाना-बजाना आदि, ताम्बूल (पान की वोडा), मद्य ( मदिरा), माला (सुगधित पुष्पो की माला), सेण्ट, इतर तैल आदि खुशबूदार या सुगधित द्र-य, सुन्दर मनोहर चित्र-विचित्र पुष्पो वाला उद्यान और मन को प्रसन्न रखने वाले कर्म मनुष्य को मैथुन-शक्ति प्रदान करने वाले है।
भोजनानि विचित्राणि पानानि विविधानि च । गीत श्रोत्राभिरामाश्च वाचः स्पर्शसुखास्तथा ॥ यामिनी सेन्दुतिलका कामिनी नवयौवना। गीत श्रोत्रमनोहारि ताम्बूल मदिरा स्रजः ॥ गधा मनोज्ञा रूपाणि चित्राण्युपवनानि च । मनसश्चाप्रतीघातो वाजीकुर्वन्ति -मानवम् ॥
(सु चि २६ तथाभा प्र) । सम्पूर्ण प्रकार के वाजीकर द्रव्यो से सर्वाधिक बाजीकरण स्त्री को माना गया है। कामवासनाओ के जागृत करने वाले एक-एक विपय जैसे मनोहर शब्दस्पर्श-रूप-रस-गध पुरुष को बलपूर्वक अपनी ओर आकर्षित करने वाले होते है-- और इनसे एक-एक के द्वारा भी प्रोति उत्पन्न हो सकती है । जब ये सभी विषय एकत्र होकर सघात के रूप मे स्त्री मे व्यवस्थित रहते हैं तब उससे बढकर और क्या वाजीकरण हो हो सकता है । स्त्री मे प्रकृति से ही ( उनको मधुमय वाणी ), रूप ( उनका लावण्यमय रूप), स्पर्श ( उनके शरीर का कोमल स्पश), रस ( उनके अधरणत रस ) तथा गध ( उनके शरीर की गंध) का आकर्षक सामं. जस्य सघात रूप में स्थापित रहता है जो पुरुप के लिये परम आकर्षण, प्रीति तथा वाजीकरण का प्रत्यक्ष हेतु बनता है। इस प्रकार का सघात अन्यत्र कही