SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 712
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिषकर्म-सिद्धि . अच्छायएक शाखश्च निष्फलश्च' यथा द्रुमः । अनिष्टगन्धश्चैकश्च निरपत्यस्तथा नरः ॥ बहुमूर्तिर्वहुमुखो बहुव्यूहो बहुक्रियः । बहुचक्षुर्वहुनानो बहात्मा च बहुप्रजः ॥ ___ + + + बाजाकरणनित्यः स्यादिच्छन् काममुखानि च । उपभोगसुखान् सिद्धान् वीर्यापत्पविवर्धनान् ।। (च. चि. २) आज युग बदल गया है। देश मे दरिद्रता के साथ ही साथ जनसंख्या भी वटती जा रही है। याज वह्नपत्पता या बहुत सन्तान पैदा करना एक अभिशाप हो गया है । नियोजित पितृत्व, सन्तति-निरोध या परिवार नियोजन (Family Plannig or Birth control ) की चर्चा चारो ओर सुनाई पड़ती है । ऐसे युग में सन्तति-नियमन ही (कम सन्तानो का पैदा करना ही ) सद्गुण हो गया है और वहुप्रज होना एक महान् समगल कर्म हो गया है। फिर भी सन्तानोत्पादन का महत्त्व कम नही हुआ है-अप्रज (बिना सन्तान वाले व्यक्ति) की बाज भी निन्दा ही है । सन्ताने जरूर पैदा होवें, परन्तु बहुत सख्या मे नही होनी चाहिये । नीति का भी वचन यही है-~"एक भी गुणी पुत्र का होना सी मूर्ख एवं दरिद्र सन्तानो के पैदा होने से अच्छा है।" अथवा "बहुत सी सन्तानो का होना दन्द्रिता का प्रतीक है।" "वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खशतान्यपि । एकरचन्द्रस्तमो हन्ति न च तारागणरपि ।" "वह्वपत्यं दरिद्रता।" बाज के युग में कम सन्तानो का पैदा होना यद्यपि एक श्रेष्ठ गुण है तथापि हम ब्रह्मचर्य या इन्द्रिय-दमन के द्वारा इस कार्य का सम्पादन नही कर सकते। पोंकि कामुक वासनाओ का नियमन करना असभव है। यह वासना आज के युग में पूर्व की अपेक्षा किसी कदर कम नहीं हो सकी है। यदि यह कही सभव : रहता तो हमे आज मतिनिरोध के लिये बडी-बड़ो औपधियो की खोज की योजना या संतति नियामक विविध प्रवन्धो, प्रचारो, शिक्षण तथा शस्त्र कर्म के मनुसन्धान की आवश्यकता नहीं पड़ती पेवल पति-पत्नी के मयम से ही काम चल जाता। चूकि इनकी कामवासनाओ का दमन करना सर्वथा असभव है । अस्तु, हमे नतान नियमन के लिए नाना प्रकार के कृत्रिम साधनो का ( Contracep tive Methods ) ईजाद करना पट रहा है। फरत माज नमाज को ऐसी मोपधिया की जरूरत है जो कामुकवामनायो को जागरूक गरें, परन्तु गर्भाधान या सन्तानोत्पत्ति कम हो या बिल्कुल न हो। फामुष वामनानो या फार्मपणा की पूर्ति का होना आज भी उतना ही आवश्यक
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy