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चतुर्थ खण्ड : बयालीसवाँ अध्याय सर्वाधिक आयु देने वाला है "ब्रह्मचर्यमायुष्कराणा श्रेष्ठतमम्" (चरक ) परन्तु इसका यदि पालन सभव न हो सके तो गृहस्थी में रहकर स्वास्थ्य-सरक्षण का दूमरा उत्कृष्ट मार्ग वाजीकरण सेवन का है । कारण यह है कि वाजीकरण या वृष्य योगो के सेवन से शुक्र की उत्पत्ति और वृद्धि होती रहती है और शुक्र के क्षय होने पर भी पुरुप मे किसी प्रकार की दुर्बलता नही आने पाती प्रत्युत उसका स्वास्थ्य अधिकाधिक बढता चलता है।
वाजीकरण तथा सन्तानोत्पत्ति-वाजीकरण योग वष्य होते हैउनसे शुक्र जनन को क्रिया अधिक हो जाती है । इनसे शुक्र कोट (Sperms) भी दृढ हो जाते है । परिणाम स्वरूप सन्तानोत्पत्ति भी अवश्यम्भावी हो जाती है । प्राचीन काल मे पुत्रोत्पादन या सन्तानोत्पादन को बडी महत्ता दी जाती थी। पुत्र पद की व्याख्या करते हुए शास्त्रो मे लिखा है-'नाम नरक से जो रक्षा करता है उसे पुत्र कहते है। फलतः पुत्रोत्पादन एक धर्म कार्य है। इसके विपरीत नि मन्तान व्यक्ति की निन्दा समाज मे होती थी, लिखा है-छायारहित, दुर्गधित पुष्पो वाले, फलरहित और एक शाखा वाले अकेले वृक्ष को भांति सन्तानहीन पुरुप होता है । सन्तानरहित व्यक्ति की उपमा चित्र में खीचे दोपक से, सूखे तालाव से, सुवर्ण की आभा वाले असुवर्ण से, तृण के बने पुतले से, दी गई है। समाज मे उसको प्रतिष्ठा नही होती है। उसे नग्न के समान, एकेन्द्रियवाला तथा निष्क्रिय व्यक्ति माना जाता है।
एतद्विपरीत सन्तानयुक्त पुरुष की प्रशसा करते हुए भी बचन पाये जाते है-जैसे बहुत सन्तानयुक्त व्यक्ति को बहुत मूर्तिवाला, बहुत मुख वाला, बहुत च्यह ( बहुत रूप का ) वाला, बहुत नेत्रो वाला, बहुत ज्ञान वाला, बहुत आत्मावाला तथा बहुक्रिय व्यक्ति कहा गया है। बहुत सन्तान वाले व्यक्ति को मगलमय दर्शन वाला, प्रशसित, धन्यवाद का पात्र, वीर्यवान् एव बहन शाखाओ से यक्त वक्ष की भांति स्तुत्य कहा गया है। अपत्य या सन्तान के अधीन प्रीति, चल, सुख, वृत्ति, कुल का विस्तार, लोक में यश तथा सुख की प्रीति सभव रहती है। इसलिये गुणवान् एवं सच्चरित्र सन्तान पैदा करने के लिये मनुष्य को सतत प्रयत्नशील रहने का भी उपदेश पाया जाता है। इस प्रकार कामैषणा की तप्ति के लिये कामसुखो को प्राप्त करने के लिये, ससार के सम्पूर्ण सुखो के उपभोग के लिये वीर्य तथा सन्तानोत्पादन क्रिया के बढाने वाले वाजीकरण साधनो का पुरुष को नित्य उपयोग करना अपेक्षित है। वाजीकरण तन्त्र की महत्ता इस दृष्टि से भी स्वीकार की गई है।