________________
६१८
भिपकर्म-सिद्धि दारुहरिद्रा, वरुण की छाल, गोखरू बोज, मुण्डी और गिलोय इन्हें प्रत्येक एक एक तोला लेकर महीन चूर्ण करे फिर इस चूर्ण के बरावर अर्थात् १२ तोले विधारा के मूल का या वीज का चूर्ण मिलावे । मात्रा ३-६ माशे । अनुपानकाजी या गोमूत्र ।
पंचकोल चूर्ण--पिप्पली, पिप्पली मूल, चव्य, चित्रक और शुठी का सम प्रमाण मे लेकर बनाया चूर्ण । मात्रा १-२ माशा। भोजन के साथ मिलाकर सेवन ।
नित्यानन्द रस--शुद्ध पारद, शुद्ध गधक, ताम्र भस्म, कास्य भस्म, बग भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध तुत्थ, शंख भस्म, कपर्दिका भस्म, लौह भस्म, त्रिकटु, त्रिफला, विडङ्ग, पच लवण, चव्य, पिपरामूल, हाउबेर, बच, कचूर, पाठा, देवदारु, इलायची, विधारा, निशोथ, चित्रकमूल तथा दन्तीमूल प्रत्येक का चूर्ण १-१ तोला । प्रथम पारद-गंधक की कज्जली बनावे फिर अन्य भस्मो तथा चूर्णो को खरल कर मिलावे । फिर हरीतकी के रस की भावना देकर पांच-पांच रत्ती की गोलियां बना ले । मात्रा १-२ गोलो प्रात. साय शीतल जल या दूध से। बहुत से रोगो मे विशेषत श्लीपद में यह एक उत्कृष्ट योग तथा एक सिद्ध एवं प्रसिद्ध वैद्यकीय योग है जिसका श्लीपद मे उपयोग परम लाभप्रद होता है ।
श्लीपद गज केशरी रस-शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, त्रिकटु, शुद्ध वत्सनाभ, अजवायन, चित्रक मूल, शुद्ध जयपाल वीज, शुद्ध टकण और शुद्ध मन.. शिला । प्रत्येक १-१ तोला । प्रथम पारद एवं गंधक को खरल कर कज्जली बनावे पश्चात् अन्य द्रव्यो का सम्मिश्रण करके खरल करे । फिर भृगराज स्वरस, गोखरू क्वाथ, अदरक के रम और जम्वीरो नीबू के रस की पृथक्-पृथक् एक-एक दिन तक भावना देकर २-२ रत्तो को गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख ले । मात्रा १-२ गोली। अनुपान उष्ण जल । विवध कोष्ठ से युक्त श्लीपद रोगो मे उत्तम एव श्रेष्ठ योग है।
मण्डूर- केवल मण्डूर भस्म ४ रत्तो की मात्रा में या पुनर्नवा मण्डूर ४ रत्तो-१ माशा मधु के साथ दिन में दो वार देना श्लोपद में हितकर होता है ।
उपसंहार-श्लीपद के रोगी को विश्राम देना चाहिये । अधिक पैदल चलना या नायकिल चलाना भी अच्छा नही पड़ता है। सोते समय उसको शाथ युक्त शाखा को तकिये के सहारे ऊँचा उठा कर रखना अच्छा रहता है । कृमि रोग तथा शोधाधिकार में प्रयुक्त मण्डर, लौह के योग अयवा कृमिघ्न योगी का सेवन भी श्लोपद में लाभप्रद रहता है ।