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________________ चतुर्थ खण्ड : उन्तालीसवाँ अध्याय ६१६ श्लीपद के आक्रमण काल मे ज्वर प्राय आता है । इस ज्वर मे विषम ज्वर वाला उपचार करना चाहिये । नित्यानन्द रस का तुलसी, निर्गुण्डो, पारिजात अथवा अदरक के रस और मधु से उपयोग उत्तम रहता है । चन्दन और दारु हल्दी का कपाय श्लीपद के आक्रमण काल मे उत्तम रहता है । त्रिफला कषाय मे गोमूत्र मिला कर देना भी उत्तम रहता है । दौरे के बीच मे नित्यानन्द रस या श्लीपद गजकेशरी रस का प्रयोग कई मास तक करने की आवश्यकता रहती है। तीन से छ. मास तक उपयोग करने पर वडा ही उत्तम लाभ देखने को मिलता है । इस अधिकार मे अन्य औषधियो और योगो का उपयोग भी हितावह रहता है । ☆ उन्तालीसवाँ अध्याय कुष्ठरोग प्रतिषेध परिचय - " कुष्णातीति कुष्ठम् " शरीर की त्वचा आदि धातुवो का नाश करने के कारण उस रोग को कुष्ठ कहते है । आयुर्वेद में कुष्ठ शब्द से दाद, खुजली जैसे साधारण त्वचा के रोगो से लेकर बडे-बडे रोग जैसे कोढ, कुष्ठ आदि का भी ग्रहण किया जाता है । इन दोनो मे भेद-प्रदर्शन के लिये क्षुद्र कुष्ठ तथा महाकुष्ठ ये दो प्रकार कुष्ठ रोग के बतलाये गये है । पुन क्षुद्र कुष्ठ ग्यारह प्रकार के और महाकुष्ठो के सात प्रकार वतलाये गये है । आधुनिकदृष्ट्या विचार करने पर क्षुद्र कुष्ठो को त्वचा के रोग ( Skin Diseases ) और महाकुष्ठो को वास्तविक कुष्ठ या Leprosy कहते हैं । हेतु तथा सम्प्राप्ति -- विरुद्ध अन्न-पान, अपक्व एव गरिष्ठ अन्न का सेवन, अध्यशन, अधारणीय वेगो का रोकना, भोजन के अनन्तर व्यायाम करना, अधिक सन्ताप या धूप का सेवन, परिश्रम के अनन्तर सहसा शीतल जल के सेवन, नवीन अन्न, अधिक दही - मत्स्य- लवण - उडद-आलू- पिष्टद्रव्य- तिल-गुड-अम्ल का सेवन, दिवास्वाप, माता-पिता- गुरु ब्राह्मण एव आचार्य का तिरस्कार करना तथा अन्य
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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