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चतुर्थ खण्ड : चौतीसवाँ अध्याय
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कुलज सभी रोग असाध्य - प्रमेह भी यदि कुलज हो तो असाध्य होता है । प्रमेही से उत्पन्न संतान भी प्राय प्रमेही पैदा होती है और उसका रोग भी असाध्य हो होता है । इन दोनो अवस्थाओ मे अमाध्यता पंदा करने वाला कारण गर्भारभक चीजदोप ( शुक्रकीट, डिम्बगत क्रोमोजोम्स ) होता है । यदि प्रमेही का वल मास बहुत क्षीण हो गया हो तव भी वह असाध्य हो जाता है । सभी प्रमेह सम्यक् रीति से उपचार न होने से अत मे मधुमेहत्व को प्राप्त करते है ओर तव वे असाध्य भी हो जाते है ।
मधुमेह - समय पर उचित उपचार न करने से सभी प्रमेह मधुमेह मे परिणत होकर असाध्य कोटि मे पहुँच जाते है । चूँकि मधुमेह मे रोगी मधु के समान मधुर मूत्र का त्याग करता है और शरीर मे भी माधुर्य रहता है अत इस रोग को मधुमेह कहते हैं । मधुमेह कारणभेद से दो प्रकार का होता है- एक धातुक्षय से कुपित वायु से तथा दूसरा पित्त और कफ से आवृत वायु के द्वारा | इनमें आवरण दोपजनित या उपेक्षित प्रमेहजन्य मधुमेह कष्ट साध्य किन्तु स्वतंत्र वातकोपजन्य में मधुमेह असाध्य होता है |
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मधुमेह आधुनिक विद्वानो के अनुसार प्राङ्गोदोयो ( Carbohydrates) के ममवर्त्त' ( Metabolism ) की विकृति का परिणाम होता है । मधुमेह प्रमेह रोग अन्तिम परिणाम ( Seqnella1 ) के रूप में पैदा होता है -- इसमे मूत्र की मधुरता के साथ-साथ शरीर की भी मधुरता पाई जाती है । शरीर की मधुरता से रक्तगत शर्करा को वृद्धि समझनी चाहिये । अर्थात् मधुमेह मे रक्तगत शर्करा को वृद्धि के साथ-साथ मूत्र द्वारा भी शर्करा का उत्सर्ग होता है । इसे मधुमेह युक्त परम मधुमयता ( Hyper Glycaemia with Glycosuria or Diabetes Mellitus ) कहते है । श्लेष्मिक प्रमेहो मे पाये जाने वाले रोग इक्षुमेह से इसका यही भेद है-- इक्षुमेह मे केवल मूत्र मे माधुर्य ( Glycosuria ) पाई जाती है, परन्तु Diabetes Mellitus मे शरीर का मधुर होना या रक्त-गत शर्करा का Threshhold ) से अधिक होना आवश्यक है शर्करा को वृद्धि नही होती है । २
वृक्क देहली ( Renal जब कि इक्षुमेह मे रक्तगत
१ जात प्रमेही मधुमेहिनो वा न साध्य उक्त स हि बीजदोषात् ।
ये चापि केचित् कुलजा विकारा भवन्ति तास्तान् प्रवदन्त्यसाध्यान् ॥ (च )
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२ सर्व एव प्रमेहास्ते कालेनाप्रतिकारिण.
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मधुमेहत्वमायान्ति तदाऽसाव्या भवन्ति हि ॥ ( सु )
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