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________________ भिपक्रम-सिद्धि शर्करा में परिमाण के अतिरिक्त और कोई भेद नही है। इन दोनो की उत्पत्ति समान कारणो से होती है, लक्षण और चिह्न भी तुल्य स्वरूप के ही होते है और चिकित्सा भी समान ही है । मूत्रवेग के साथ शर्करा के निकलने से मूत्रकृच्छ्र तथा वेदना होती है-और निकल जाने पर वेदना गान्त हो जाती है-जब तक अन्य शर्करा मूत्रस्रोत को फिर से अवरुद्ध न कर दे। अश्मरी से सामान्य लक्षण-नाभि, सेवनी, अण्ड एवं गुदा के मध्य मे, वस्ति के ऊपरी भाग पेड़ में वेदना होती है । यश्मरी के द्वारा मूत्रमार्ग के अवरुद्ध हो जाने पर मूत्र कई धाराओ मे निकलता है। मूत्रमार्ग से अश्मरी के हट जाने पर रोगी स्वच्छ यो गोमेद के समान कुछ रक्त वर्ण का मूत्रत्याग करता है। यदि अश्मरी के रगड से वस्ति में क्षत हो जाय तो मूत्र मे रक्त भी आने लगता है। मार्ग में अश्मरी के रहने पर प्रयत्नपूर्वक मूत्र-त्याग किया जाय तो भयङ्कर पीडा होती है। मृत्रकृच्छ-मूत्राघात तथा अश्मरी प्रतिषेध-इनमे बहुत सी अवस्थायें है जिनमें रोग गल्यकर्म साध्य रहता है। अस्तु, यदि औपवियो के सेवन से कोई परिवर्तन रोगी में न दिखाई पडे तो किसी गल्यतंत्रविद् की सलाह लेनी चाहिये और मावश्यक हो तो शल्यतंत्रीय उपचार के लिये रोगी को प्रेपित करना चाहिये । इन सभी रोगो में परम्पर में सामजस्य है। मूत्रकष्ट, वस्ति को उपरी भाग में वेदना, मूत्र की धारा का दोप प्रभृति लक्षण उन तीनो रोगो मे समान भाव से पाये जाते है । अस्तु, चिकित्सा में व्यवहृत होने वाले योगो मे भी पर्याप्त साम्य है। यहां पर पृथक् पृथक क्रियाक्रम तथा भेषजो का उल्लेख किया जा रहा है। भेषजो में अदल-बदल कर तीनो अवस्थाओ में प्रयोग किया जा सकता है। मूत्रकृच्छ्र-में वातिक लक्षणो की प्रबलता हो तो अभ्यग, स्नेहन, स्वेदन, उपनाह, वातघ्न औपवियों से परिपेक, निल्ह वस्ति तथा उत्तर वस्ति का उपयोग किया जा सकता है। पैत्तिक लक्षणो की प्रबलता हो तो शीतल उपचार, विरेचन, परिपेक, अवगाहन, गीतल योपवियो का लेप (चदन, कमलनाल, कपूर प्रभृति ), १ अश्मयैव च शकरा। सा भिन्नमूर्तिर्वातन शर्करेत्यभिधीयते । मूत्रवेगनिरस्ताभि प्रामं याति वेदना । यावदस्या पुनर्नेति गुडिका स्रोतसो मुखम् ।। २ यादी मूल कृति देगे कटौ स्यात् पश्चाद्रोधो जायते मूत्ररक्तम् । एतैलिगश्मरीरोगचिह्न ज्ञात्वा कुर्याद भेपजाद्यश्चिकित्माम् ॥ यो. र.
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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