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भिषक्कर्म-सिद्धि
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कई वार अष्टोलावृद्धि ( Enlarged Prostate ), अर्ग तथा सूत्रकृमि ( Threadworms ) में भी मूत्रकृच्छ उत्पन्न हो सकता है ।
चरक के अनुसार मूत्रकृच्छ्र आठ प्रकार का हो सकता है । वार्तिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक, सान्निपातिक, शल्याभिघातज ( आघात या विजातीय वस्तु की मूत्रमार्ग मे उपस्थिति ), पुरीपोदावर्त्त ( पुरोप के वेग को रोकने से ), मूत्रमार्ग स्थित अश्मरी के कारण अश्मरीज मूत्रकृच्छ्र ( Bladder stone ) तथा शुक्रोदावरीज (शुक्र के वेग को रोकने से ) ।
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मूत्राघात - इस अवस्था में मूत्र का पूर्णतया अवरोध हो जाता है (Retention of urine ), मूत्र का त्याग बूंद बूंद करके बिना पीडा के हो जाता है, वस्ति, मूत्र से पूर्णतया भर जाती है, परन्तु, रिक्त नही होती है । मूत्रकृच्छ्र मूत्र का अवरोध नही होता है वल्कि मूत्रस्राव होता है-किन्तु पोढ़ा, वेदना मोर जलन के साथ | मूत्राघात में वेदना मूत्र के अवरोध या रुकावट के कारण होती है | कईबार मूत्रवसाद की भी एक अवस्था पाई जाती है । जव शरीर से जलीयाग चहुत निकल गया हो, हृदय की पेशियां कमजोर हो गई हो, मूत्र का वनना ही कम हो जाता है (Suppression of urine) जैसा विसूचिका के उपद्रव में होता है | सूत्राघात रोग में इस अवस्था का भी समावेग हो सकता है । ( इसके ज्ञान के लिये विसूचिका अध्याय देखें ) 1
मूत्राघात तेरह प्रकार के होते है -१ वातकुण्डलिका (Spasm of urethra ), २ वातवस्ति एवं ३ मूत्रजठर (Distended Bladder), ४. अष्टीला (Enlarged Prostate ), ५. मूत्रातीत ( Incontinence of urine ), ६ मूत्रोत्मग ( stricture of urethra). ७. मूत्रक्षय ( पूर्वोक्त सूत्रावसाद Anurea or suppression of urine ), ८. मूत्रग्रंथि (Enlarged prostate or Tumour of the Bladder), ९ मूत्रशुक्र, १० उष्णवात ( Chronic cystitis or urethritis of Gonorrhoeal or other origin ), ११. मूत्रसाद ( Supp ression or Scanty urine ), १२ विविघात ( Recto vesical Fistula, १३. वस्तिकुण्डल (Atonic state of the Bladder ) ।'
अश्मरी या शर्करा ( Stone or Calculus ) – पथरी शरीर में विविध प्रकार की विभिन्न स्थानो में पाई जाती है । जैसे क - मृत्राश्मरी (Urinary
१ जायन्ते कुपितैर्दो पैर्मूत्राघातास्त्रयोदश ।
प्रायो मूत्रविघाताद्य र्वातकुण्डलिकादय ॥ ( मा नि. )