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________________ भिपकर्म-सिद्धि ४४८ देना ) और ओपविसिद्ध घृतो का पान कराते हुए उसकी मन-बुद्धि-स्मृति और मंत्रा आदि को जागृत करके स्वस्थ करना चाहिये 19 १ उन्माद के रोगियों में सब समय उनके प्रतिकूल ही आचरण करना प्रगस्त नही है । मय, तर्जन, त्रासन करने के अनन्तर उसको बीच-बीच में अनुकूल याचरणो के द्वारा या धर्म-अर्थ से युक्त वचनो ने प्रसन्न करना, मित्रो के सम्पर्क में लाना, मित्रो के द्वारा उसको सान्त्वना या आश्वासन दिलाना और उसको खुश रखना भो आवश्यक होता है | यदि किसी इष्ट (वाहित) द्रव्य के नष्ट हो जाने से उसके मन को अभिघात पहुंचा हो और उन्मत्त हो गया हो तो उसको तत्सदृग द्रव्यो की प्राप्ति कराना या उसको शीघ्र प्राप्त होने का आश्वासन या सान्त्वना देना उचित है । इसी प्रकार काम-शोक-भय-क्रोध-दर्प-ईर्ष्या और लोभ से उत्पन्न मनोविभ्रमजन्य उन्माद में उनके यापन में प्रतिद्वन्द्वी भावो के प्रभाव से अच्छा करना हितकर होता है । जैसे कामजन्य उन्माद में हर्पण ( प्रसन्न करना ), भयज उन्माद में क्रोध, क्रोवज उन्माद में शोक पैदा करनेवाले समाचार, ईर्ष्याजन्य उन्माद मे प्रेम जोर गोकज उन्माद में इन्ति पदार्थ की प्राप्ति कराना । इन क्रियावो से उन्मत्त का विकृत मन प्रकृतिस्थ होता है। कई वार विस्मय के उत्पादन करने से भी लाभ होता है जैसे बद्भुत या आश्चर्यजनक वस्तुवो को दिखलाना उनके अभिलपित या प्रिय पदार्थ के नष्ट होने की महसा सूचना देना | कुष्माण्ड फल- मय वीज भेपज - १ ब्राह्मी या मण्डूरपर्णी का स्वरस २ और मज्जा का स्वरम, ३ राखपुष्पी स्वरस तथा ४ मीठी वच का स्वरन (स्वरन के अभाव में वच का चूर्ण १ मागा ) । ये चारो स्वरस पृथक्-पृथक् सिद्ध उन्मादनागक भेपज है । मात्रा २ तोला । अनुपान मीठाकूठ का चूर्ण १ माना और मधु ८ मागे । यथावश्यक दिन में दो या तीन वार । 3 १ प्रदेहोत्मादनाम्यद्भवूमा. पानञ्च सर्पिप. । प्रयोक्तव्यं मनोबुद्धिस्मृतियंज्ञाप्रबोधनम् ॥ २ उष्टद्रव्यविनाशात्तु मनो यस्योपहन्यते । तस्य तत्सदृशप्राप्तिज्ञान्त्याश्वासः शम नयेत् ॥ वाश्वामयेत् सुहृट्टा तं वाक्यमर्थिनहितैः । कामशोकभयक्रोवहर्षयलोभसंभवान् । परस्परप्रतिहन्ट रेभिरेव शमं नयेत ॥ ( च. चि. ९ ) ३. ब्राह्मीकुष्माण्ठपदग्रंथाशखिनीस्वरसा. पृथक् 1 मधुकुष्ठयुता. पीता: सर्वोन्मादापहारिणः ॥ ( शा० सं० )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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