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भिपकर्म -सिद्धि
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चाहिये । इससे उन्माद दूर होता है । सत्य का आचरण, तपस्या, ज्ञान, दान, नियम, व्रत, देव-गो-ब्राह्मण- गुरु की पूजा, सिद्ध मंत्रादि के प्रयोग से आगन्तुक उन्माद शान्त होता है | ( च चि. ९ )
इस प्रकार आगन्तुक उन्माद में देग, आयु, सात्म्य, दोप, काल, चलावल का विचार करते हुए, १ वृतपान, २ मंत्र तत्र का प्रयोग ३ देवादि का पूजन ४ वलि प्रदान ५. उपहार ६ यज्ञ कराना ७ मंत्र ८ जप ९. शुचि कर्म ( पवित्रता ) १०. मंगल कर्म ( स्वस्तिवाचन ) ११ मृदु अंजन १२ रत्न एवं औषधि का धारण १३. दान १४ व्रत १५ नस्य ।
इनका उपयोग यथा विधि करना चाहिये । इन उपायो से आगन्तुक वाधायें दूर होती है । इनमें देव कोटि के वाधावो में अजन तथा नस्य प्रभृति तीक्ष्ण कर्म या क्रूर कर्म (ताटना देना, मारना, पीटना, बांधना ) आदि नही करना चाहिये । बुद्ध्वा देशं वयः सात्म्यं दोपं कालं बलावले । चिकित्सितमिदं कुर्यादुन्मादे भूतदोपजे ॥ सर्पिष्पानादिनाऽऽगन्तौ मन्त्रादिश्चेष्यते विधिः । पूजावल्युपहारेष्टिहोममन्त्राञ्जनादिभिः ॥ जयेदागन्तुमुन्मादं यथाविधि शुचिर्भिपक् । देवपिपितृगन्धर्व रुन्मत्तस्य तु वुद्धिमान् ॥ वर्जयेदब्जनादीनि तीक्ष्णानि क्रूरकर्म च । भूतानामधिपं देवमाश्वरं जगतः प्रभुम् । पूजयन् प्रयतो नित्यं जयत्युन्मादजं भयम् ॥ रुद्रस्य प्रमथा नाम गणा लोके चरन्ति ये । तेपां पूजां च कुर्वाण उन्मादेभ्यः प्रमुच्यते ॥ बलिभिर्मङ्गलैहमरो पव्यगढ़धारणैः । सत्याचार-तपो ज्ञान-प्रदान- नियम त्रतैः ॥ देवगोत्राह्मणानाञ्च गुरूणां पूजनेन च । आगन्तुः प्रशमं याति सिद्ध मन्त्रीपवैस्तथा ॥
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( चचि ९ ) कृष्णाद्यंजन - गोरोचन, छोटी पीपल, काली मिर्च, संन्धव इन चारो को बरावर लेकर महीन चूर्ण करके करके मधु के साथ अजन |
मरिचाद्यंजन-काली मिर्च का चूर्ण और गोरोचन को एकत्र महीन पीसकर एक मास तक धूप में रखकर अंजन करने से भूतोत्य उन्माद दूर होता है ।