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( ४४ ) रसायन के प्रकार, कुटी प्रावेशिक विधि, अशुद्ध शरीर में रसायन प्रयोग निष्फल, सौर्यमारुतिक विधि, आचार रमायन, रसायन सेवन की आयु, आमल की रमायन, हरीतकी रसायन, त्रिफला लौह रसायन, रसायन औपधियाँ, सरल रसायन सेवन के योग, मेधावृद्धिकर रसायन, भृङ्गराज रसायन, अश्वगन्धा रसायन, तिल रमायन, नागवला रसायन, पलाशवीज रसायन, पुनर्नवा रसायन, वृद्धदारुक रसायन, वाराहीकंद रसायन, चित्रक रसायन, हरीतकी रसायन, अमृतादि रसायन, गुडूच्यादि रसायन योग, ब्राह्मी रसायन, त्रिफला रसायन, पिप्पली रसायन, शतावरी धृत, वचा रसायन, आमलकी स्वरस, सोमराजी रसायन, रसोन रसायन, विडङ्ग रसायन-विडगावलेह, भल्लातक रसायन, गुग्गुलु रसायन शिलाजतु रसायन, गंधक रसायन, सुवर्ण रसायन, पंचारविन्द रसायन, अन्य रस योग, रसायन पथ्य, मज्जतैल रसायन ।
पंचम खण्ड : परिशिष्ट परिशिष्टाध्याय
७०७-७२९ वृद्धिरोग प्रतिपेध, वृषण वृद्धि या अण्डकोष शोथ चिकित्सा क्रम, गलगण्ड, अमृताच तैल, गण्डमाला-अपची प्रतिषेध, काचनार गुग्गुलु व्रण-शोथ विधि एव व्रण प्रतिपेध, शिग्रु, दशाङ्ग लेप, व्रणशोधन, अनन्तमूल रोपण, जात्यादि तैल, अधःपुप्पी, सद्योव्रण, नाडीव्रण, उदुम्बर सार, गुण एवं उपयोग, अग्निदग्ध व्रणलेप, भग्न, अस्थिसंहारादि चूर्ण, भगन्दर, नवकार्षिक गुग्गुलु, विसर्प, मसूरिका, निम्बादि कपाय, पटोलादि कषाय, उपदश-फिरग, अकरी, पाददारी, युवानपिडिका-मुखदूषिका, व्यंग (झाई) अरुषिका (रूसी), इन्द्रलुप्त, नापितकण्ड, शय्यामूत्र, लोमशातन (केश गिराने के उपाय ), अलस (अंगुलियों का सडना), मुख-पाक, जात्यादि कपाय, तुण्डिकेरी चलदन्त (दाँतों का हिलना), दाँतों में पानी लगना, दशनसस्कार चूर्ण, वज्रदत मजन, इरिमेदादि तैल, कर्णशूल, कर्णस्राव दुष्ट प्रतिश्याय या जीर्ण नासारोग, या अपीनस, चित्रक हरीतकी, व्याघ्री तैल, नेत्राभिष्यद, फुल्लिका द्रव, नेत्रविन्दु, चन्द्रोदया वत्ति, त्रिफलाद्य घृत, सप्तामृत लौह, त्रिफला चूर्ण, अवर्ण शुक्र, शि रशूल, शिर शूलादि वज्र, पथ्यापडङ्ग कपाय, गोदन्ती भस्म पविन्दु तैल, रज'कृच्छू, रजोल्पता, रजावरोध, रज.प्रवत्तिनी वटी, कुमार्यासव, रक्तप्रदर तथा योनिव्यापद, सिद्धामृत योग, दाादि कषाय, पुण्यानुग चूर्ण, अशोकारिष्ट, फल घृत द्रव्य तथा निर्माण विधि, सूतिका रोग, दशमूल क्वाथ, सूतिका दशमूल काथ, दशमूलारिष्ट, बाल रोग, बालचातुर्भद्रिका, लाक्षादि तैल, दाडिमचतुःसम, महागन्धक, अष्टमगल घृत बालशोष, दृश्चिक दश, सपेदश, विषों में प्रतिविप, अपस्मार, सूर्छा, भामवात, मापादि मोदक, अधोग रक्तपित्त, रक्तशोधक कपाय, औषध सेवन काल, आचार्य परम्परा प्रशस्ति ।