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( ४३ ) पंचतिक्त घृत, सोमराजी धृत, पंचतिक्त घृत गुग्गुलु, अमृतभल्लातक, धातवीय योग, तालकेश्वर रस, रसमाणिक्य, ब्रह्मरस, गलत्कुष्ठारिरस, सर्वेश्वर रस, आरोग्यवर्धिनी, कुष्ट मे बाह्म प्रयोग, मनःशिला दिलेप, करमादि लेप, आरग्वधादिलेप, भल्लातकादि लेप, चक्रमर्दादि लेप, दद्रुतवटी, पामा मे लेप, रसादिलेप, सिध्म या सेवा में लेप, कुष्ठ गेग में व्यवहृत होने वाले तैल, अर्क तैल, करवीर तैल, कृष्ण मर्प तैल, मरिचादि तैल, मोमराजी तैल, तुवरकाद्य तैल, श्वेतकुष्ट चिकित्सा, गुजाफलचित्रक लेप, ओष्ठ-श्वित्रहरलेप, पचानन तैल, आरग्वधाघ तैल, श्वित्रकुष्ठ मे अन्त. प्रयोग की औपध, श्वेतारिरस, सर्जरसादिलेप, जीवन्त्यादि लेप, मधूच्छिष्टादि लेप । । चालीसवाँ अध्याय
६४१-६४६ शीतपित्त-प्रतिषेध, रोगपरिचय, अमृतादि कपाय, मधुयष्टयादि कपाय, हरिद्रा खण्ड, विश्वेश्र रस, बाह्य प्रयोग, सिद्धार्थ लेप, दूर्वादि लेप, क्षारजल, दार्वी तैल, कोठ-रोग मे क्रियाक्रम, शीतपित्तादि मे पथ्यापथ्य । इकतालिसवाँ अध्याय
६४६-६५३ अम्लपित्त प्रतिपेध, रोग परिचय, सा-यसाप्तता, क्रियाक्रम, पथ्यापथ्य, वासादशाङ्ग कषाय, द्राक्षादि चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण, द्राक्षादि गुटिका, नारिकेल खण्ड, वण्डकुष्माण्डावलेह, सौभाग्य शुठी, नारायण घृत, धान्यरिष्ट, सूतशेखर रस, लीलाविलास रस, अम्लपित्तान्तक लौह, सितामण्डूर । बयालिसवाँ अध्याय
६५३-६७६ __ वाजीकरण, निरुक्ति, वाजीकरण के गुण या फल, वाजीकरण के विषय, वाजीकरण के अभाव में दोप, ब्रह्मचर्य तथा वाजीकरण, वाजीकरण तथा सन्तानोत्पत्ति, सामान्य वाजीकर द्रव्य, वाजीकर या वृष्य द्रव्य, नाना वृष्य ओषधियाँ, वृष्य वातावरण, वाजीकर भोपधि की प्रयोग विधि, वाजीकरण में अपथ्य वाजीकरण योग, कामदीपक चाण्डालिनी योग, आभिष प्रयोग, अपत्यकर स्वरम, कमलाक्षादि चूर्ण, वानरी गुटिका, श्री मदनानन्द मोदक, महाचदनादि तैल, भल्लातक तैल, वसायोग, क्रमवारुणी मूल, दशमूलारिष्ट, मृतसंजीवनी सुरा, नारसिह चूर्ण, आम्रपाक या खण्डाम्रक, वीर्यस्तम्भकर योग, कामिनी विद्रावण रम, वीर्य स्तम्भ वटी, वृप्य रसौपधि योग, पुप्पधन्वा रस, कामिनी दर्पन रस, मन्मथाभ्र रस, चन्द्रोदय रस, चन्द्रोदय मकरध्वज (स्वल्प), मकरमुष्टि योग, अश्वगन्धा घृत या कामदेव घृत । तैतालिसवाँ अध्याय
६७६-७०३ रसायन, शाब्दिक-व्युत्पत्ति, परिभापा, भेपजाभेपज, रसायन गुण, दिव्यौपधियों अथवा रसायनों का अवतरण, रसायन का भालोचनात्मक विवेचन,