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चतुर्थ खण्ड: बीसवाँ अध्याय
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मुनाका, विजीरा नीबू, अम्लत, इमली का सत, अनार दाने, फालसा और आंवला इनके रस को मन्य के साथ पीने से सर्व प्रकार के मदात्यय मे लाभ होता है। मन्थ-जी के मत्तू को घी में मलकर चीनी और ठंडा पानी मिलाकर घोल लेना मंथ कहलाता है।
मद्य का हीनवीयकरणोपाय-यदि मनुष्य मद्य-पान करने के पश्चात् तुरन्त ही घो में चीनी मिलाकर पी लेवे तो उग्रवीर्ययुक्त मद्य भी उस मनुष्य को मदयुक्त नहीं करता है। अर्थात् नशा तेज नही होने पाता है । अस्तु, घी और शक्कर का प्रयोग मदात्यय मे लाभप्रद होता है।
अन्य मद-कई वार मद्य के अतिरिक्त मादक-कोदो, सुपारी या धतूरे के सेवन ने भी नशा तेज हो जाता है। इन अवस्थामओ में सुपारी के नशे मे शीतल जल को पेट भर ( आकठ ) पिलाना, शख भस्म का सूधना या जंगली कडे की राख का सू चना, नमक खिलाना तथा चीनी का शर्वत पिलाना लाभप्रद होता है। मादक कोदो के मद मे पेठे का रस ( पूरे पेठे को मय छिल्का बीज पीसकर उमका स्वरस ) गुड के साथ सेवन तथा धतूरे के मद में दूध और मिश्री का पिलाना लाभप्रद रहता है । वैगन के फल या पत्र का स्वरस भी लाभप्रद है।
योग-अष्टाङ्ग लवण-कालानमक, काला जीरा, वृक्षाम्ल (विषाम्विल), अम्लवेत प्रत्येक १ तोला, दालचीनी, छोटी इलायची, मरिच प्रत्येक ३ तोला । इनको कूट पीस कर उसमे १ भाग चीनी डालकर शीशी मे भर ले । यह अष्टाङ्ग लवण क्फप्राय मदात्यय तथा सर्व मदात्यय मे लाभप्रद होता है। यह अग्नि का संदीपन करता है और स्रोतो का विशोधन करता है। यह वडा स्वादिष्ट और रुचिकर योग है। मदात्यय के अतिरिक्त रुचिकर योग के रूप में भी इसका उपयोग हो सकता है। ___ एलादि मोदक-छोटी इलायची, महुए का फूल, चित्रक मूल, हल्दी, दारुहल्दी, त्रिफला, लाल शालि चावल, छोटी पीपल, मुनक्का, खजूर, काली तिल, जौ, विदारीकद, गोखरू बीज, निशोथ की जड और शतावर का कद । प्रत्येक समभाग तथा समस्त द्रन्यो से दुगुनी खाड मिलाकर मोदक बनावे। सुबह-शाम गाय के दूध के अनुपान में लेने से सब प्रकार के मदात्यय मे लाभ होता है।
कज्जली-पारद और गधक की सम प्रमाण में बनी कज्जली का आँवले के रस और मिश्री के सेवन से सर्व प्रकार के मदात्यय मे लाभप्रद होता है। मात्रा १-२ रत्ती।
ध्वंसक तथा विक्षय-मे उपचार वातिक मदात्यय के सदृश करना चाहिये । क्योकि अत्यत दुर्बल और क्षीण धातु के रोगियो मे ये पाये जाते है । अस्तु, दूध
२७ भि० सि०