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________________ ३९६ भिपकर्म-सिद्धि १३. रस योग सुधानिधि रस-गुद्ध पारद और गंधक एक-एक भाग लेकर कज्जली वनावे । उममें दन्तीमूल क्वाथ की एक भावना दे। फिर जम्बीरी नीबू का रम, अदरख का रस, विजौरा नीबू का रस, विजौरे नीबू की मज्जा के रम की पृथक् पृथक् एक-एक भावना दे। फिर उसमें सुहागे की खील (शुद्ध टंकण) २ भाग, लवङ्ग ५ भाग, गुट्ट वत्सनाम विष (पारे का चौथाई भाग ) मिलाकर जल से पीसकर मागे-मागे भर की गोलियां बना ले । मात्रा १ मे २ गोली । अनुपानगुठी या गुट के साथ खावे। सभी प्रकार के अरोचक एवं अग्निमाद्य में लाभप्रद है। पथ्य-गेहूँ, चावल, मूग, गूकर-बकरा-खरगोग-हिरण का मास, मछली, तरबूज, वेत्त के मा, मूली, बैंगन, सहिजन, अनार, केला, कमरख, परवल, काला नमक, घी, दूध, कच्चे ताल फल, लहसुन, सूरण, दाख, भाम, नीम के कोमल पने, काजी, मद्य, रसाला, दही, मट्टा, अदरक, खजूर, कैथ, वेर, खाँड, हरट, अजवायन, काली मिच, होग, स्वादु-अम्ल एवं तिक्त द्रव्य, उवटन, तीरे पर ठडे में टहलना और स्नान भरोचक में प्रशस्त है। अपथ्य-वेगविधारण, अहृद्य अन्न-पान, रक्तमोक्षण, क्रोध, लोभ, गोक, भय प्रभृति माननिक उद्वेगो को अधिकता, दुर्गन्य एव कुरूप द्रव्यो का अवलोकन बरोचक में वजित है। सत्रहवा अध्याय छदि-प्रतिपेध प्रादेशिक-जिम रोग में वमन (के) होना प्रमुख लक्षण के रूप में पाया जाना है उसको दि रोग कहते है । यह पाँच प्रकार का वात, पित्त, कफ, विदोप, ने ( दोपज या शारीरिक ) तथा आगन्तुक (मानसिक उद्वेग मे ) का होता है। अन्ननलिका तथा मुख द्वारा यामागयिक पदार्थों का वेगपूर्वक निकलना इस छटि रोग में पाया जाता है। १. द्रुतमुत्क्लेशितो बलात् । छादयन्नानन वेगैरर्दयन्नंगभजन. । निरुच्यत दिरिति दोपो वक्त्र प्रधावित ॥ दुष्टदोषः पृथक् मर्वीभत्मालोचनादिभिः । छर्दय पञ्च विजेचा. | अनिद्रवरतिस्निग्धरहृयलवर्णरति । अकाले चातिमात्रैश्च तथा सात्म्यैश्च भोजने ॥ श्रमाद् भयात्तथोडे गादजीर्णाकृमिदोपतः । नायश्चिापन्नसत्त्वापास्तथातिद्रुतमश्नत ॥ बीभत्सर्हेतुभिश्चान्य. ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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