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________________ चतुर्थ खण्ड : सत्रहवॉ अध्याय ३६७ प्रतीच्य वैद्यक के आधार पर छदि को तीन बडे भागो मे विभक्त किया जा नकता है। १. केन्द्रीय छर्दि ( Central Vomiting )-मस्तिष्कगत वामक केन्द्र के उत्तेजना के फलस्वरूप वमन होना । इस प्रकार का वमन किसी वस्तु के प्रति स्वाभाविक घृणा, भय ओर बीभत्स हेतुओ से वामक केन्द्र के उत्तेजित होने से उत्पन्न होता है । इस प्रकार की अवस्था प्रायः असहिष्णु (Neurotic) व्यक्तियो में पायी जाती है । कई बार मस्तिष्कावंद, मस्तिष्कावरण शोथ प्रभृति गेगो में शोर्पान्तरीय निपीड (Intra. Cranial Pressure) के बढने से भी इस प्रकार की छदि का होना सभव है। १ प्रत्यावर्त्तन क्रियाजन्य छर्दि ( Reflex Vomiting)-यह भामाशस्थ विकृत खाद्य पदार्थ, विभिन्न सेन्द्रिय तथा निरिन्द्रिय विपो से आमाशय कला के क्षोभ तथा आमाशय के अधिक तन जाने से छदि उत्पन्न होती है। जैसे अतिद्रव, अति स्निग्व, अहृद्य, असात्म्य भोजन आदि । 3 विपजन्य छर्दि (Toxic Vomiting )-कई प्रकार के बाहय तथा अतस्थ विपो का प्रभाव साक्षात् मस्किषकगत वामक केन्द्र पर होता है फलत वमन होने लगता है । जैसे तूतिया, ताम्र, लवण जल तथा मत्रविषमयता ( uraemia ) आदि । आगन्तुक छर्दि में सुश्रुत मे वीभत्स ( घणोत्पादक ) पदार्थों का देखना, मुघना या सेवन के अतिरिक्त, कृभिजन्य छदि तथा गर्भकालीन छदि का भी वर्णन पाया जाता है । इनमे त्रिदोपज के अतिरिक्त सभी छदि रोग साध्य है, निम्नलिखित उपद्रवयुक्त छदि भी तृपाधिक्य, श्वासाधिक्य, लगातार हिक्का युक्त वमन ( जलाल्पता Dehydration से ) तीव्र वेग का वमन अथवा मल-मूत्र के ममान गध एवं वर्ण वाला वमन (आवावरोध Intestinal obstuction) असाध्य होता है। क्रियाक्रम-सभी प्रकार के छदि रोग मे आमाशय का उत्क्लेश (क्षोभ Irritation ) पाया जाता है । अस्तु, सर्वप्रथम उपक्रम मे लधन या उपवास कराना चाहिए । आमाशय के क्षोभ के कारण कुछ भी देने से वमन वढ जाता है, अस्तु जब तक वमन शान्त न हो जाय वल्कि वमन के वद हो जाने पर भी जब तक आमाशय का क्षोभ शान्त न हो जाय (वमन के चार या छ घन्टे वाद तक) रोगी को कुछ भी खाने को नही देना चाहिए। छदि रोग मे यदि विशुद्ध वायु दोप पाया जावे और रोगी दुर्बल हो तो
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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