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________________ चतुर्थ खण्ड : सोलहवा अध्याय ३९५ दो छटांक मे १ तोला इस चूर्ण को मिलाकर सेवन करे। इससे अग्नि और रुचिको वृद्धि होती। ८ शिखरिणी-भली प्रकार औटाया दूध, वस्त्र मे बंधी हुई जल रहित भैस की दही इनको एक में मिलाकर इसमे बराबर चीनी मिलाकर एक मोटे कपडे पर घिन कर छान ले । पश्चात् उसमें छोटी इलायची, लौंग, कपूर और कालीमिच का चूर्ण मिलावे । यह एक रुचिकारक भोजन है । ९ रसाला-खट्टी दही १२८ तोला, श्वेत चीनी ६४ तोला, गोघृत और शहद ४-४ तोला, काली मिर्च और और मोठ का चूर्ण २-२ तोला, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात और नागकेसर प्रत्येक ३ तोला । प्रथम दही को एक कपडे में बाँधकर एक खुटो से लटका दे। जब उमका पानी निकल जाय । तब उस दही को एक श्वेत वस्त्र पर रखकर स्वच्छ हाथो से घिसकर छान ले। फिर कपडे से छाने दही में शेप द्रव्यो के चूर्गों को मिलाकर कपूर से वासित करके पात्र मे भर रख लेवे । यह रसाला सर्वप्रथम भीमसेन ने बनाई थी जिसको भगवान् श्रीकृष्ण ने आस्वादित किया था। यह स्निग्ध वृहण और रुचिप्रद योग है। १०. अवलेह-विजीरा नीबू या कागजी नीबू का केसर, सैधव तथा घो के माथ बार-बार लेने या नीबू का रस मधु से लेने से या अनार के दाने चूसने से अरुचि दूर होती है। १ । ११ सैधव-अदरक-अदरक का नमक के साथ भोजन के पूर्व खाना । २ १२ चूर्ण यमानीपाडव-अजवायन, इमली का चूर्ण या सत्त्व, सोठ, अम्लवेत, खट्टा अनार दाना, और खट्टे वेर की सूखी मज्जा प्रत्येक एक-एक तोला, धनिया, सोचल नमक ( काला नमक ), श्वेत जीरा और दालचीनी प्रत्येक आधा तोला, छोटी पोपल १००, काली मिच २०० तथा मिश्री १६ तोले। यह यमानी पाडव चूण मुखशोधक, रुचिकारक, हृदय और पार्श्व-शूलशामक, विवध तथा आनाह को दूर करने वाला, कास और श्वास शामक तथा ग्रहणी एव अर्श मे भी लाभप्रद है । अरुचि मे इसका थोडा-थोडा चूसना या नीबू का रस मिलाकर सेवन फलप्रद होता है। १. शमयति केसरमरुचि सलवणघृतमाशु मातुलुङ्गस्य । दाडिमचर्वणमथवा चरको रुचिकारि सूचयामास । (यो र ) २ भोजनाने सदा पथ्य लवणाकभक्षणम् । ' रोचन दीपन वह्न जिह्वाकण्ठविशोधनम् ।। (भा० प्र०) - अहाता ह ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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