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चतुर्थ खण्ड : चौदहवा अध्याय ३८३ दशमूल कपाय-दगमूल के क्वाथ में पिप्पली चूर्ण ४ र० का प्रक्षेप डालकर पीना अथवा पुष्कर मूल ४ रत्ती का प्रक्षेप डालकर पीने से श्वास तथा कास में लाभ होता है।
चासादि काथ-अडूसा, हल्दी, धनिया, गुरुच, भारंगी, छोटी पीपल, सोठ, मरिच मोर कटकारी इन का सम भाग में लेकर जौकुट कर के २ तोले द्रव्य को ३२ तोले जल में खोलकर ८ तोले जल मे खोलाफर ८ तोले शेप रहने पर पिलाये। दिन में दो वार प्रातः और सायम् । यह एक सिद्ध योग है । यह (anti spasmodic ) तथा ( anti Alergic) पडता है। कास और श्वास में बड़ा लाभप्रद होता है ।' क्वाथ मे कुछ लोग मरिच का चूर्ण डालने का विधान बताते है---अर्यात् मरिच के अतिरिक्त अन्य द्रव्यो का क्वाथ बनाकर उसमे ७ दाने मरिच को छोड कर पीना।
डामरेश्वराभ्र-वज्राभ्रक भस्म को लेकर खरल मे डालकर निम्नलिखित द्रव्यो की प्रत्येक की एक भावना दे । भारङ्गी, धतूर, गिलोय, अडूसा, कसौंदी, पारिभद्र, चव्य, पीपरा मूल और चित्रक का क्वाथ या स्वरस यथालाभ । मात्रा ३ रत्ती की गोलियां । अनुपान अदरक का रस और मधु ।
- महाश्वासारि लौह-लौह भस्म २ तोला, अभ्रक भस्म ३ तोला, पिसी हई मिश्री और शहद दो दो तोले । हरड, बहेरा, आँवला, मुलैठी, मुनक्का, बेरकी मज्जा, वंशलोचन, तालीश पत्र, वायविडङ्ग, छोटी इलायची, पुष्कर मूल
और नागकेसर प्रत्येक का चूर्ण ३ तोला । लौह के सरल मे डालकर लौह के मुमली से छ घटे तक घोटकर ३ रत्ती की वटिका बनाकर रख ले। मात्रा १-२ गोली । अनुपान मधु । सभी प्रकार के श्वास रोग मे लाभप्रद ।
“श्वास कुठार रस-कज्जली, शुद्ध वत्सनाभ विप चूर्ण, शुद्ध टकण, शुद्ध मन शिला प्रत्येक एक एक तोला तथा ८ तोला काली मिर्च का चूर्ण, ६ तोला पिप्पली चूर्ण और ६ तोला सोठ का चूर्ण । प्रथम पारद-गधक की कज्जली बना कर शेप द्रव्यो को महीन पीस कर मिश्रित करे। मात्रा १-२ रत्ती। अनुपान आर्द्रक स्वरस और मधु । विविध प्रकार के श्वास और कास रोग मे लाभप्रद । इस श्वासकुठार का नस्य भी दिया जा सकता है। मूर्छा, सूर्यावर्त, अर्धावभेदक तथा अपतत्रक मे नासारध्र से इसका प्रयोग रोगी को जागृत
१. वासाहरिद्राधनिकागुचीमाीकणानागररिङ्गिणीनाम् । (छोटी कटेरी या रेंगनी)। क्वाथे नमारीचरजोऽन्वितेन श्वास शम कस्य न याति पुस ।
(वै. जी )