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________________ भिण्ार्म-सिद्धि ३८२ ११. अश्वगंध का क्षार ( असगन्ध जलाकर उसकी राख ) का मधु से सेवन । १२. सुवर्चला का स्वरस या गिरीप पुष्प स्वरस या सतपर्ण स्वरस का मधु के साथ मेवन । १३ मण्डूकपर्णी का स्वरस और कटु तैल का सेवन | रसयोगो के अनुपान रूप में भी इनका उपयोग किया जा सकता है । जीवद्रव्य गाय, खर, अश्व, उष्ट्र, गूकर, भेंड और गज के विष्ठा का रस पृथक्-पृथक् कफावित्र्य युक्त श्वास रोग में मधुके साथ पिलाने से लाभप्रद होता है । मयूरपात्र नाल ( मोर के पैर की नली ), गल्लक, साही का शकल ( मत्स्यशकर के आकार का शकल ), कुत्ता, जाण्डक, चाप, कुरर के रोम-केश, शृंगवाले तथा एक खुर या दो सुर वाले पशुवो के चर्म, अस्थि तथा खुर । इन द्रव्यो की भस्म पृथक्-पृथक् या एक में मिलाकर घृत और मधु से सेवन श्वास रोग मे बडा ही लाभप्रद होता है । इनका प्रयोग सदैव कफ को अविकता युक्त श्वाम में करना उत्तम होता है इनमें अम्बर एक वडा सुलभ पदार्थ है इसको जलाकर उसकी रास १ माशा और यवक्षार १ माशा मिलाकर मधु के साथ देने ने सच लाभ होता है । यह एक सिद्ध योग है। खरगोग, गल्लक मास और गोणित और पिप्पली से सिद्ध घृत का प्रयोग श्वास में वाताधिकय होने पर देना चाहिये । । हरिद्रादिलेह - हरदी, कालीमिर्च, मुनक्का, रास्ना, छोटी पिप्पली, कचूर और पुराना गुठ नव मिलाकर महीन पीस कर कडवे तेल में मिलाकर चाटने से श्वास रोग में उत्तम लाभ होता है । - श्रृंगचादि चूर्ण - काकडासोगी, भारगो, त्रिफला, सोठ, पोपरि, कालीमिर्च, कटकारी, नागर मोथा, पुष्करमूल, कचूर और कालीमिर्च सव का एक-एक भाग लेकर महीन चूर्ण बनावें फिर उसमें मिश्री ७ भाग मिलाकर रखले | मात्रा ६ मागे । अनुपान गहद । इम औषधि के साथ बृहत् पंचमूल, गुडूची और लटू का काढ़ा भी पिये । तो उग्र श्वास रोग में भी तीन दिनी में लाभ पहुँचता है । ग्यादि चूर्ण एक दूसरा योग है जिसमें मिश्री के स्थान पर पंच लवण पडता है। इसका भी सेवन उत्तम रहता है । शृग्यादि चूर्ण का केवल गर्म जल / म पीना भी लाभप्रद रहता है । १ एते हि कफमंरुद्ध गतिप्राणप्रकोपत तस्मात्तन्मार्गशुद्धययं देवा लेहा न निष्कके ॥ ( च चि. १७. )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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