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________________ भिपकर्म-सिद्धि ३८४ करने के लिए किया जा सकता है । इस योग में मन गिला पटा हुआ है जो एक after का यौगिक है। ● श्वास - कास चिन्तामणि रस - शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गधक २ भाग मोनामाली की भस्म १ भाग, सुवर्ण भस्म १ भाग, मुक्ता भस्म ई भाग, अभ्रक भस्म २ भाग, लोह भस्म ४ भाग | सबको एकत्र महीन पीसकर खरल मे डालकर कटकारी स्वरस, वकरी का दूध, मघुयष्टी का काढा और पान के रस में से प्रत्येक की सात सात भावना देकर बनावे | सात्रा १ से २ रत्ती । अनुपान पिप्पली चूर्ण और मधु । यह एक उत्तम योग है। सभी प्रकार के श्वास में विशेषत हृज्ज श्वास ( Cardiac Asthma ) में लाभप्रद प्राया जाता है । 'नागार्जुनाभ्र रस - सहस्रपुटी अभ्रक भस्म ( अभाव मे अधिक से अधिक पुट का अभ्रक भस्म ले) को अर्जुन की छाल के क्वाथ मे सात भावना देकर छाया मे मुखाकर रख ले | मात्रा २ रत्ती । अर्जुन क्षीरपाक । यह हृदय के विविध कपाटीय रोग ( Volvulardiseases ) एव तज्जन्य श्वास रोग में लाभप्रद पाया जाता है । वल को बढाने वाला, वृष्य तथा रसायन है । ~ भाग गुड - भारी ५ सेर, दणमूल ५ सेर, पोटली में बाँध कर १०० बढे हरड सबको एक वडे भाण्ड में लेकर चतुर्गुण जल छोड कर आग पर चढावे, चतुर्या क्वाथ शेष रहने पर छान कर उसको पृथक् रख ले। फिर इस छाने चत्राथ को एक कलईदार कडाही में रख कर उसमे ५ सेर गुड बोल कर, स्विन्न किने हरटी को टाल कर चूल्हे पर पुन पाक करे जब वह गाढा होने लगे तो उनमे मोठ, मरिच, पीपर, इलायची, दालचीनी और तेजपात इनमे से प्रत्येक का चूर्ण ४ तोले और यवचार २ तोले मिलाकर चलाते रहे । चाशनी के गाढ़ा होने पर उतारे । ठढा हो जाने पर उसमें २४ तोले शुद्ध शहद मिलाकर किसी मृतवान में भर कर रख ले | मात्रा २-४ हरड चासनी के साथ । अनुपान गर्म दूध या जल | वाम रोग में दौरे के बीच के काल में इसका एक बल्य-योग ( tonic ) के रूप में व्यवहार लम्बे समय तक करना चाहिए । कनकासव--धतूरे का पचान (मूल, गासा, पत्र, पुष्प, फल सबमे युक्त ) १६ तोले, लहूने की जट १६ तोले, महुवे का फूल ८ तोले, तालीश पत्र ८ तोले, पिप्पलीयण्टकारी नागकेशर शुण्ठी-भारगी प्रत्येक ८ तोले । कूट पीस कर चूर्ण के रूप में कर लेवें । बाय के फूलो का चूर्ण १ सेर, मुनक्का १ सेर, जल २५३ र ८ तोले, मिश्री ५ सेर और शहद २|| सेर | घृतस्तिग्व भाएट में भर कर भाण्ड का मुख वद करके एक मास तक एकान्त वायु के /
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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