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( ३६ ) पंचामृत पर्पटी, तान्न पर्पटी, निरन्न चिकित्सा-पथ्य, पर्पटी प्रयोग विधि, ससर्जन क्रम। आठवाँ अध्याय
२७८-२६१ ___ अर्शोरोग प्रतिपेध, अर्श रोग मे तक्र, शुष्कार्श मे भेपज, बाह्य या स्थानिक प्रयोग, नेक, धूपन, उपनाह, गुदवति, पिचुधारण, जलौका, पिच्छावस्ति, कामायन मोदक, श्री वाहुशाल गुड । नवा अध्याय
१६१-३०६ अग्निमान्द्य-प्रतिषेध, भास्कर लवण, अग्निकुमार रस, रामबाण रस, क्रव्याद रस, अत्यग्नि चिकित्सा, भजीर्ण प्रतिपेध, आमाजीर्ण प्रतिपेध, विदग्धाजीर्ण-प्रतिषेध, क्षारराज, कुबेराक्षादि वटी, बिलम्बिका तथा अलसक प्रतिषेधक्रियाक्रम, विसूचीप्रतिपेघ-क्रियाक्रम, अजीर्णकटक रस, सजीवनी वटी, विसूची भजन वटी, विसूची विध्वसन रस, खल्ली, मूत्रावसाद । दसवाँ अध्याय
३०६-३३१ कृमिरोग-प्रतिपेध, मलज, श्लेष्मज, पुरीपज, आमाशयांत्र कृमि, अकुशमुख कृमि, गण्डूपद कृमि, स्फीत कृमि, सूत्रकृमि या तन्तु कृमि, प्रतोद कृमि, श्लीपद कृमि, भद्रसुस्तादि क्पाय, विडङ्गादि चूर्ण, कृमिमुद्गर रस, पाण्ड तथा कामला प्रतिपेध, व्योपादि घृत फल त्रिकादि कपाय मण्डूर वटक, पुनर्नवादि मण्डूर, नवायस लौह, निशालौह, योगराज, कामला प्रतिषेध, सामान्य या कोष्टाश्रया कामला, आरोग्यवर्धिनी वटी, शाखाश्रित कामला प्रतिपेध, कुम्भकामला-प्रतिषेध, हलीम-प्रतिषेध । ग्यारहवाँ अध्याय
_३३१-३४३ रक्तपित्त प्रतिपेध, ऊर्ध्वग, अधोग, उभयग, अधोग रक्तपित्त, सशमन, मंशमनोपचार, वासा स्वरम, नासागत रक्तपित्त, उशीरादि चूर्ण, एलादि गुटिका, कुप्माण्ड खण्ड, रक्तपित्त-कुलकण्डनरस, सुधानिधि रस, चन्द्रकला रस । बारहवाँ अध्याय
३४४-३६२ राज यचमा प्रतिषेध, अनुलोम, प्रतिलोम, चतुविध हेतु, त्रिविरूप, शोधन निपेध, राजयक्ष्मा मे पथ्य, अपथ्य, मासाहार, बहिर्मार्जन, जीवन्त्यादि उत्सादन, अजा पंचक घृत, दशमूलादि कपाय, अश्वगन्धादि कपाय, कर्पूराद्य चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण, वासावलेह बृहत् , च्यवनप्राश, द्राक्षारिष्ट महामृगाङ्क रस, चन्दनवलालाक्षादि तैल। तेरहवाँ अध्याय
३६२-३७३ ___कास रोग प्रतिपेध, अपराजित लेह, भाङ्गर्यादि लेह, दशमूली घृत, कण्टकार्यवलेह, बलादि क्वाथ, इच्वादिलेह, कटकार्यादिकपाय, समशर्कर चूर्ण, वृहत्