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चौदहवाँ अध्याय
हिक्का-श्वास-प्रतिपेव प्रादेशिक-माधारण वोल चाल में हिक्का को हिचकी और श्वास को दमा कहते है । खामी के साथ दमा का घनिष्ट सम्बन्ध है । खाँसी पुरानी होकर श्वास रोग को उत्पन्न करती है। इन दोनो का पाठ भी प्राय. शास्त्रों में साथ साथ या एक के बाद दूसरे का (अर्थात् कासके बाद ग्वाम का) पाया जाता है। चिकित्सा में बहुत से भेपज और उनके योग समान ही मिलते है और दोनो में लाभप्रद पाये जाते है। ग्वाम रोग के साथ हिक्का रोग का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन तन्ह काम (Cough), श्वास ( Asthma) तथा हिक्का ( Hiccough ) के लक्षण समुद्राय (syndrome) तीनो रोगो में परस्पर में सम्बद्ध है मस्तु दो या तीनो का पाठ एक ही अध्याय में किया मिलता है।'
कास-हिक्का और श्वास में निदान ( हेतु ) और चिकित्सा सूत्र (Principles of treament) समान होने की वजह से दोनो या तीनो रोगो में समानता होते हुए भी सम्प्राप्ति, क्रिया तथा बैग में भिन्नता होने की वजह से काम का पाठ पृथक किया गया है। इसके अतिरिक्त दोपभेद से कास रोग में बातिक-पत्तिक-ग्लैष्मिक आदि भेद होते हैं। हिक्का-वाम मे इस प्रकार के भेद नहीं होते है । नाय ही हिलका-श्वान में प्राणोदान ममाना-पान तथा कास मे प्राणोदान ही विकृत होता है । अस्तु, कास रोग का स्वतंत्र वर्णन पाया जाता है। और ज्वान का साथ माय ।
हिरका और श्वास रोग में केवल वात और कफ दो दोपों की ही प्रधानता होती है, माथ ही पचन संस्थान की विकृति का होना भी अनिवार्य है जैसा कि दृवल ने कहा है 'कफवातात्मकावेती पित्तस्थानममुद्गतो' अर्थात् हिक्का एवं श्वास रोग पित्त स्थान से उद्भूत होते हैं। और कफवातात्मक होते हैं। यहा 'वाय. फेनानुगत पञ्च टिका करोति च' अर्थात् वायु कफ से मिलकर पाच प्रकार की दिकका पैदा करता है। भाचार्य वाग्भट ने तो श्वास और हिक्का रोग में
१ हिरका-स्वाससामान्योत्पादकनिदानमाह-विदाहिगरुविष्टम्भिरुक्षाभियंदिभोजन. बीतपानागनस्थानरजोघमातपानिलः ।। व्यायामकर्ममाराध्ववेगाघातापतर्पण हिपना बासश्च कासश्च नणा ममुपजायते ॥ (सु ३.५०) .