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चतुर्थ खण्ड : चौदहवाँ अध्याय
एक हो हेतु प्रारूप, संख्या, प्रकृति और समय " श्वासेकहेतुप्राग्रूपसंख्याप्रकृतिमंत्रया कहकर विराम के लिया है । यद्यपि हिक्का और श्वास में आरभक दोष नमान होते है तथापि उनमे सम्प्राप्ति, वेग, स्वर, लक्षण तथा प्रतिपेत्र मे प्रयुक्त होने वाले भेषजो के भेद से पर्याप्त भेद हो जाता है । अस्तु, दोनो की चिकित्मा का पृथक् पृथक् उल्लेख किया जाता है ।
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हिक्का और श्वाम रोग स्वतंत्र भी हो मकते है अथवा किसी अन्य रोग मे उपद्रव स्वरूप मे भी पैदा हो सकते हैं । " ये दोनो ही सद्य घातक रोग है । प्राण को नष्ट करने वाले रोग यद्यपि बहुत है, तथापि वे हिक्का और श्वास के समान उनती शीघ्रता से प्राणो का नाश नही करते है । इन अवस्थाओ में श्वासावरोध, हृदय का घात ( Syncope ) या सन्यास ( coma ) से सद्य. प्राणनाथ का भय रहता है । हिक्का और श्वास ये महान् प्राणघातक रोगो के लिये उतरे की घटी का काम करते हैं । "
हिक्का -- आधुनिक विचारको के अनुसार हिक्का की उत्पत्ति अनुकोष्ठिका वातनाडी ( Phrenic Nerve ) के क्षोभ ( Irritation ) से होनेवाले महाप्राचीरा पेशी (Diaphragm) के अनियमित सकोच (Clonic Diapthragmatic spasm is called Hiccough ) के कारण होती है । स्वभाविक दशा में आमतौर से महाप्राचीरा के सकोच के साथ ही उपजिह्विका द्वार ( Epiglottis ) खुलता है, परन्तु अनियमितता आने पर इन दोनो क्रियावो मे अन्तर आ जाता है जिसमे अंत श्वसित वायु उपजिह्विका द्वार के वद होने के कारण रास्ते मे हो अवरुद्ध हो जाती है जिससे हिक हिक् शब्द की उत्पत्ति होती है । एतदर्थ इस रोग को हिक्का या हिचकी कहते हैं । इस अनियमित सकोच के विविध कारण है । उन सबको दो प्रधान वर्गों मे बाँट सकते है १ पचन संस्थानीय २ वात संस्थानीय ( Nervous )
१. अतिसारज्वरच्छदिप्रतिश्यायक्षतक्षयात् । रक्तपित्तादुदावत्तद् विसूच्यलसकादपि ॥ पाण्डुरोगा द्विपाच्चैव प्रवर्त्तेते गदाविमौ । निष्पावमापपिण्याकतिल - तैलनिषेवणात् ॥ पिष्टशालूकविष्टम्भिविदाहिगुरुभोजनात् । जलजानूपपिशितदध्यामक्षीरसेवनात् ।। अभिष्यन्द्युपचाराच्च श्लेष्मलाना च सेवनात् । कण्ठोरस - प्रतीघाताद्विविधैश्व पृथग्विधै ॥ (च )
२ कामं प्राणहरा रोगा बहवो न तु ते तथा ।
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यथा श्वासश्च हिक्का च हरत प्राणमाशु च ॥ ( चचि २१ ) ३ मुहुर्मुहुर्वायुरुदेति सस्वनो यकृत्प्लिहान्त्राणि मुखादिवाचिपन् ।
स घोषवानाशु हिनस्त्यसून् यतस्ततस्तु हिक्केत्यभिधीयते बुधै ॥