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चतुर्थ खण्ड : तेरहवाँ अध्याय
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न भागोत्तर गुटिका - शुद्ध पारद १ तोला, गन्धक २ तोला, पिप्पली चूर्ण ३ तोला, हरीतकी चूर्ण ४ तोला, बहेडे का चूर्ण ५ तोला, अडूसे के मूल या पत्ती का चूर्ण ६ भाग, भारती चूर्ण ७ भाग । इनका महीन चूर्ण । बब्बूल के रस या कषाय की भावना | मधु मिलाकर १ माशे की गोलियां । पिप्पली चूर्ण और मधु अथवा कंटकारी क्वाथ या अदरक रस और मधु से सेवन करावे अथवा मधुयष्टी चूर्ण और मधु के साथ दे। कुकास मे यह योग विशेष लाभप्रद ( Whooping Cough) पाया जाता है ।
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श्रृगाराभ्र, बृहत् श्रृंगारान इनका भी यथायोग्य अनुपान से प्रयोग कास मे लाभप्रद होता है
नागवल्लभ रस - कस्तूरी, चोच, टकण प्रत्येक १ तोला, केशर, दरद, पिप्पली प्रत्येक २ तोला, अकरकरा, जातिपत्री, जातीफल ( जावित्री एवं जायफल ) प्रत्येक ४ तोले । महीन चूर्ण करके । पान के रस मे तीन दिनो तक मर्दन करे | मूंग के बराबर गोली बना ले । आर्द्रक के रस और मधु के अनुपान से अथवा पान में रखकर खाने का विधान है ।
वासाचन्दनादि तैल -- श्वेत चन्दन, रेणुका, खट्टाशी, अश्वगन्धा, गन्ध प्रसारिणी, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपत्र, पिपरामूल, नागकेशर, मेदा, महामेदा, सोठ, मरिच, पिप्पली, रास्ना, मुलेठी, भूरि छरीला, कचूर, मीठा कूठ, देवदारु, प्रियङ्गु और वहेडे के फल का छिलका प्रत्येक ४-४ तोले भर लेकर सबको जल के साथ पत्थर पर पीस कर कल्क बना लेवे । फिर तिल-तैल ३ सेर
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१६ तोला, अडूसा पञ्चाग का क्वाथ, लाक्षा का स्वरस अथवा काढा, दही का पानी तथा लालचन्दन, गुडूची, भारंगी, दशमूल, छोटी कंटकारी का मिश्रित क्वाथ प्रत्येक का आवा द्रोण | तेल-पाक विधि से सिद्ध कर ले। इस तेल का अभ्यग पूरे शरीर मे विशेषत छाती, पीठ और पार्श्व मे करने से जीर्ण कास मे उत्तम लाभ होता है । धूम प्रयोग - जात्यादि धूम - चमेली की पत्ती, मरिच, मन शिला, आक की जड, गुग्गुल • बेर की पत्ती और जटामासी सम भाग में लेकर मोटा चूर्ण बना कर अर्क क्षीर से भावित कर के सुखाकर रख ले। निर्धूम अगारे पर थोडा छोडकर धूम के पीने से खांसी मे वडा लाभ होता है । धूम-पान का थोडी देर बाद दूध और मिश्री या मिश्री का शर्बत पिलाना चाहिये । पान का लगा वोडा खाने को देना चाहिये | इससे खाँसी मे तत्काल लाभ होता है ।
अपथ्य -- चावल, दधि, शर्बत, लस्सी, नया गुड, दूध, मछली, कदशाक, अन्य गुरु, शीत एव अभिष्यन्दी महार, धुलि, घुवे आदि का स्थान कास रोग मे अपथ्य है |