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________________ चतुथ खण्ड : नवाँ अध्याय ३०१ अलक की भाँति ही विलम्बिका की चिकित्सा की जाती है, परन्तु अलसक को अपेक्षा विलम्बिका अधिक दुःसाध्य और सद्योघातक होती है । अलसक मे न वमन होता है न रेचन । फलत: अंत विपमयता के कारण रोगी तडपता रहता है । अस्तु, सेधानमक मिलाकर आकठ पिलाना चाहिये अथवा शुद्ध ककुष्ठ २ माशा खिलाकर वमन करादे | उसके बाद उदर को खूब सेकना चाहिये | कई बार आस्थापन या गुदवत्ति के जरिये कोष्ठ की शुद्धि करनी चाहिये | कई वार जयपाल अथवा स्नुहीतीर - मिश्रित नाराच रस, इच्छाभेदी या विन्दु घृत ( स्नुहीक्षीर सिद्ध घृत ) के प्रयोग से उत्तम लाभ देखा जाता है । इन औपधियो के सेवन से वमन और विरेचन दोनो शोधन कर्म सम्पन्न हो जाते है। रोगी की विपमयता दूर हो जाती है । योगो के सेवन से जैसे यदि आनाह या आध्मान और उदरशूल अधिक हो तो दारुषट्कलेप (देवदारु, वच, कूठ, सौफ या सोये का वीज, हीग, सेधानमक समभाग ) का काजी या सिरके से पीस कर गर्म करके उदर पर लेप करना उत्तम होता है । जौ के आटे मे यत्राखार मिला कर मठ्ठे से पीस कर लिट्टी जैसे बनाकर एक तरफ से तवे पर सेककर जिधर नही सेका है उस ओर से उदर बाँधना वडा उत्तम उदरशूल और आध्मान का शामक होता है । " उदर के स्वेदन के लिये गर्म पानी का बोतल ( Hot wrter Bag ) भी दिया जा सकता है । विसूचीप्रतिपेध - क्रियाक्रम - ' विसूच्यामतिसारवत्' अर्थात् विसूचिका मे अतिसारवत् चिकित्सा करनी चाहिये । विसूचिका मे वमन भी होता है और अतीसार भी । फलत. शरीर के द्रव धातु का अतिमात्रा मे नि सरण होने लगता है । जिसके फलस्वरूप द्रव-नाश ( Dehydration ) होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है । विसूचिका में वमन और अतिसार को शीघ्र बद करने की आवश्यकता नही रहती है बल्कि प्रारभ मे उसकी उपेक्षा करनी चाहिये । क्योकि वमन और रेचन से आमदोप (Toxins ) निकलते रहते है । यदि उनको सहसा बदकर दिया जावे तो आमदोपज बहुविध उपद्रव होने लगते है । अस्तु जब कुछ वमन और विरेचन हो जायें उसके पश्चात् रोगी का दीपन, पाचन एव ग्राही ओपधियो का प्रयोग करते हुए उपचार करना चाहिये । ૨ १ सरुक् चानद्धमुदरमम्लपिप्टें प्रलेपयेत् । दारुहैमवती कुष्ठशता हा हिङ्गु सैन्धवै ॥ तक्रेण पिष्ट यवचूर्णमुष्ण सक्षारमति जठरे निहन्यात् । ( घर ) २ विसूचिकाया वमित विरिक्तं सुलघित वा मनुज विदित्वा । पेयादिभिर्दीपनपाचनैश्च सम्यक क्षुधार्त्त समुपक्रमेत ॥ ( र )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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