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________________ ૨૦૦ भिपकम-सिद्धि की गोली । अनुपान कण्टकारी स्वरस या नीबू के रस के साथ । अजीर्ण या विभूचिका के कारण होने वाले वमन में लाभप्रद । ____ अजीर्णारि रस-शुद्ध पाग्द, गुढ़ गंधक एक-एक तोला, हरीतकी २ तोले, मोठ, पिप्पली, काली मिर्च, संन्धव ३-३ तोले । शुद्ध भाग का चूर्ण ४ तोले । निम्बु स्वरन से ७ भावना । मात्रा २ मे ४ रत्ती । अनुपान कागजी नीबू के रस से । यह योग अग्नि को टोप्त करता है । पचन शक्ति को बढ़ाता है। ___गंधक वटी-शुद्ध पारद, १ तोला, गुद्ध गवक २ तोले, शुठो २ तोले, लवङ्ग और मरिच चार-चार तोले, मेधा नमक और मोचल नमक प्रत्येक १२ नोले, चुक्र जार मूली का क्षार प्रत्येक ८ तोले । नीबू के स्वरम की ७ भावना देकर ४-८ रनी की गोलियाँ बनावे । समस्त अजीर्ण मोर अरुचि में लाभप्रद । रसशेपाजीण-प्रतिषेध-इस अवस्था मे रोगी को पूर्ण विधाम कराना चाहिये । उपवास करावे और दिन में पर्याप्त मोने का उपदेश करना चाहिये। श्रीपधि के बप में मण्दर भम्म और ख भस्म क्रमश १ मागा बीर २-२ रत्ती मिला कर दिन में एक या दो बार त्रिफला चूर्ण २ मागे और मधु देना चाहिये । रोगी को दूब दौर रोटी के पथ्य पर लवणवळ नाहार पर रखना चाहिये। होग, मोठ, मरित्र, ठोटी पीपल और नेवा नमक को पानी से पीस कर उदर पर लेप करके दिन में पर्याप्त रोगी को मुलाये। आमतौर से सभी अजीर्णो मे शूलन्न नीपधियो का निपेव पाया जाता है । अजीर्ण भद-प्रतिषेध बजीर्ण के कई अन्य प्रकार अलमक, विलम्बिका और विमूचिका की अवस्थायें पाई जाती है। इन में भी अजीर्णवत ही उपचार का क्रम रखना चाहिये। दनका विशिष्ट क्रिया-क्रम पृथक-पृथक दिया जा रहा है। विलिम्बका तथा अलसक-प्रतिपेष-क्रियाक्रम-विलम्बिका और अलमक में वमन और विरेचन कारक औषधियों को मिलाकर आस्थापन अथवा गुदत्ति (Suppository ) कराके दोप का गोबन तया वायु का अनुलोमन करना उद्देश्य रहता है। बलमक में फवत्ति, वमन, स्वेदन तथा अपतर्पण चिकित्सा हितकर होती है । १. काम दिवा स्त्रापयेत् । मालिप्य जठर प्रानी हिंगुन्यूपणसबवे. । दिवास्वप्न प्रति नाजीविनागनम् ॥ (मै र.) • तीवात्तिरपि नाजीर्णी पिवेच्छलनमोरयम् । आमनन्नोऽनलो नाल पक्तु दोपोपवागनम् ॥ ( हृ.) ३ विलम्बिकालनकयोचाव गावनं हितम् । नालेन फलवा च तथा शोधनभेपजः ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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