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भिपकर्म-सिद्धि
सबसे उत्तम यह होता है-वमन एव रेचन मे से किसी एक को पहले वद करे साथ ही द्रव-नाश (Dehydrration ) न पैदा होने पाये इसकी व्यवस्था करनी चाहिये। वमन को वद करने के लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक होता है कि रोगी को पूर्ण लंघन कराया जाय । उसको पीने के लिए धान्यपंचक कपाय, या गतपुष्पार्क या जेवायन का अर्क या कपूराम्बु (देगी कपूर ५ तोला, क्वथित जल ३० सेर मे छोडकर रख दे सात दिन के पश्चात् निकाले और छानकर रख ले यह कर्पूराम्बु है) अथवा इमली का पानी (पुरानी इमली ( छटाँक जल ४ मेर खौलाकर आधा शेप रखे गीतल होने पर प्रयोग करे, या निम्ब जल(स्वच्छ जल मे भाग नीम की पत्ती को पीसकर छानकर गीगी में भर कर रखा जल) अथवा नीवू का पानी (१ पोण्ड बोतल जल मे एक कागजी नीबू का रस छोडकर वनाया), अश्वत्थोदक (पीपल की सूखी छाल से धृत या अगारे से बुझा जल) थोडा-थोडा चम्मच से वार वार देना चाहिये । एक बार में अधिक पानी पिलाने से वमन को सहायता मिलती है । अस्तु, चम्मच से थोड़ा थोडा जल पिलावे । ___इस प्रकार के जल-प्रयोग से वमन, तृपा और दाह की शीघ्र शान्ति होती है।
कपुरधारा-रोगी को प्रारभ मे अमृत धारा या कपुरधारा ( देशी कपूर पोदिकासत्त्व (पिपरमेण्ट), यमानीसत्त्व (थायमोल) समभाग में मिला कर वना द्रव) वतागे मे रखकर ३ वूद देना चाहिये । एक-दो बार के प्रयोग से वमन बद हो जाय तो ठीक है अन्यथा अधिक प्रयोग नहीं होना चाहिये क्योकि इसके अतियोग से वृक्क की क्रिया मे बाधा होकर मूत्रावसाद का भय रहता है।
लशुनादिवटी-छिलका निकाला हुआ लहसुन २ भाग, स्याहजीरा, सफेद जीरा, गुद्व गधक, मेंधानमक, मोठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और घी में भुनी होग १-२ भाग। चूर्ण करके निम्वुरम से मर्दन करके ४ रत्ती की गोलियाँ । मात्रा एव अनुपान १, १, गोली निम्बू के रस के साथ प्रति माथे से एक घंटे पर । प्रारथिक अवस्था मे इस योग से वडा उत्तम कार्य होता है। इससे वमन वद होता है और क्रमश अतिसार का गमन होता है ।'
अजीणकटक रस-(पूर्वोक्त ) छदि या वमन के गमन के लिये यह उत्तम योग है इसका सबसे अद्भुत लाभ कटकारी स्वरस से देने पर पाया जाता है। परन्तु कंटकारी स्वरम के अभाव में निम्बू के ( कागजी ) रस से भी दिया
१ लशुनगन्धकसैन्धवजीरकत्रिकटुरामठचूर्णमिदं समम् । सपदि निम्बुरसेन विमूचिका हरति भो रतिभोगविचक्षणे ॥ (वै. जी)