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( २६ ) आयुर्वेदं पठिष्यामि नैरुज्याय शरीरिणाम् ।
इति निश्चित्य मतिमानात्रेयस्त्रिदशालयम् ॥ (भैर.) आचार्य चरक ने आयुर्वेद के विशाल और व्यापक क्षेत्र के प्रति अपनी उदारता प्रतिदर्शित करते हुए लिखा है कि आयुर्वेदज्ञ को प्रत्येक औषधि ( Drug ) का मर्मज्ञ होना चाहिये । केवल नाम और रूप-ज्ञान से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिये । अपितु, उसके सम्बन्ध में यावतीय ज्ञातव्य बातों का गुण, रस, वीर्य, विपाक, देश के शनुसार एवं काल के अनुसार उनके प्रयोग की विधि, प्रति व्यक्ति की अनुकूलता के उपयोग की सभी दृष्टियों से विचार करत हुए प्रयोगज्ञ होना चाहिये । औषधि का ज्ञान यदि जंगली और असभ्य कहे जाने वाले भेड और बकरी चराने वाले आदमियों से भी हो जाय तो उसको ग्रहण करना चाहिये । बगते कि वह उत्तम और उपादेय हो । ज्ञान अनन्त है उसकी सीमा नहीं। अन्ततोगत्वा आयुर्वेद का दो ही लक्ष्य रह जाता है। वढिया औपधि ( Drug) तथा प्राणियों को नीरोग करना ( Cure)। इनमें भेपज ( Drug ) वही उत्तम है जो नरुज्य का सम्पादन कर सके। चिक्सिक (वैद्य) वही उत्तम है जो रोगी जो रोग से मुक्त कर सके
तदेव युक्तं भैषज्य यदारोग्याय कल्पते ।
च एव भिषजा श्रेष्ठो रोगेभ्यो यः प्रमोचयेत् ।। (च. सू.) इस उदार सिद्धांत में संकीर्णता का लेश भी नहीं। जब भेड और बकरी चराने वाले जंगली आदमी औपध के नाम और रूप ज्ञान कराने के लिए आयुर्वेद के गुरु बन सकते है तो क्या तथाकथित वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति या सभ्य कहे जाने वाले देशों से प्रचारित और प्रसारित विज्ञान का आलोक अर्थात् आधुनिक चिकित्सा पद्धति के आचार्य आयुर्वेद के गुरुपद या आचार्यपद को अलंकृत नहीं कर सकते हैं ? जरूर कर सकते हैं। यदि उनमें आचार्यत्व की क्षमता विद्यमान हो।
जैसा कि ऊपर में निर्देश किया जा चुका है। आज का विज्ञान औद्योगिक क्रांति ( Industrial Revolution ) का परिणाम है। वह एकक सावना में विश्वास नहीं करता उसके सम्मुख सदैव समूह, समाज, जनपद और देश का विचार है। वह एक विराट प्रकाश के रूप में विद्यमान है। उसकी तुलना में आयुर्वेद का प्रोज्ज्वल दीप कुछ फीका लगता है। आज आयुर्वेद में उसके आचायों में यह क्षमता नहीं कि उसको साहसा आत्मसात् कर सके । परन्तु यह याद रखना चाहिए कि आयुर्वेद वह दीप है जो अपने में आत्मसात् करके ही छोडेगा । उसके लिए काल अपेक्षित है। काल बडा बलवान होता है, परन्तु प्रतीक्षा तो करनी ही पडती है। भारतीय संस्कृति की यही विशेषता है कि