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द्वितीय अध्याय
८६६ आधुनिक युग की वैज्ञानिक भाषा मे शरीरान्तर्गत वैकारिक परिवर्तन (Pathogenesis) को सम्प्राप्ति कहते है । सम्प्राप्ति-विमर्श का ज्ञान आज के युग मे बहुत विकसित रूप मे प्राप्त होता है । चिकित्सा मे यह एक स्वतत्र विपय के रूप में प्राप्त होता है। इस विषय पर ( Bookson Pathology ) अर्थात् वैकारिकी या विकृति विज्ञान के ऊपर बडी बडी पुस्तको की रचना हो गई है। इसके सामान्य, विशिष्ट नैदानिक, तृणाणवीय, पाराश्रयिक प्रभृति कई भेदो के ऊपर स्वतंत्र पुस्तके पाई जाती है। फलतः यह विकृतिविज्ञान का विपय बहुत बृहत् हो गया है।
रोग के प्रधान या सहायभूत प्रधान या सहायक पूर्वरोग, लिङ्ग, आयु, देश काल, जीवाणु या आहारविहार एव तज्जन्य शरीरान्तर्गत परिवर्तनो की सम्पूर्ण परम्परा का सम्प्राप्ति नाम से उल्लेख इस विषय के अतर्गत होता है।
आयुर्वेद के ग्रन्थो मे सूत्ररूप मे इस विषय का वर्णन पाया जाता है। इस का लक्षण करते हुए विजयरक्षित जी ने मधुवोष टीका मे लिखा है.
दोपो की दुष्टि प्राकृत, वैकृत, अनुवन्ध्य ( प्रधान ) रूप या अनुबधरूप (गीण ), एकदोपदुष्टि, द्विदोपदुष्टि या समस्तदोषदुष्टि भेद से नाना प्रकार की होती है। यह दोपदुष्टि दोपप्रकोपक समस्त या अल्प कारणो से हो सकती है। इस प्रकार प्रवल या स्वल्पवल दूपित दोष के द्वारा रोग की उत्पत्ति होने को सम्प्राप्ति कहते है।
ऊर्ध्व-अध -तिर्यक् भेद से दोपो को गति अनेक प्रकार की हो सकती है-दोष शरीर के विभिन्न धातुओ को दूपित करके किसी विशिष्ट धातु या अवयव मे सश्रित होकर रूक्षता, क्षोभ, विलन्नता, मृदुता, सकोच, शोथ आदि एक या अनेक विकारो को पैदा कर सकता है। इन विकारो के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले लक्षण ( Symp Toms ) या लक्षण-समूह (Syndroone ) को रोग कहते है और दोष को दुष्टि से लेकर रोगोत्पत्ति पर्यन्त होने वाले सम्पूर्ण परिवर्तनो को सम्प्राप्ति कहते है ।
'दुष्टेन दोपेण या आमयस्य रोगस्य निवृत्तिरुत्पत्तिः सा सम्प्राप्तिः।'
पर्यायकथन--शास्त्र मे लक्षण तथा व्यवहार के लिये सम्प्राप्ति के जाति तथा आगति पर्याय पाया जाता है। जाति का अर्थ जन्म और आगति का अर्थ आगमन होता है । 'जनी प्रादुर्भाव' धातु से जाति शब्द बनता है। इसका अर्थ होता है व्याधिजन्म । किसी वस्तु का जन्म उसके ज्ञान मे कारण होता है उसी प्रकार व्याधि का जन्म भी व्याधि के ज्ञान मे कारण होता है। अर्थात