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________________ भिपकर्म-सिद्धि व्याधि उसके जन्म के द्वारा जानी जाती है। निदान-पूर्वरूप-स्प-उपगय भी व्याधि का वोव कराते हैं परन्तु सम्प्राप्ति मे भी उनसे भेद है। निदानादि व्याधि के ज्ञापक होते है, परन्तु सम्प्राप्ति ज्ञाप्य अर्थात् ज्ञान का विपय है । जिस प्रकार किसी वस्तु की सत्ता उसके ज्ञान मे कारण है उसी प्रकार व्याधिजन्म अर्थात् रोग की सत्ता उसके ज्ञान में कारण है सत्ता सम्प्राप्ति ही है। बस्तु यह कहें कि व्याधिजन्म ही सम्प्राप्ति है तो कथन ठीक मालूम होता है। __ कुछ आचार्यों का मत इसके विरुद्ध है। उनके क्थनानुसार 'व्याधिजन्म को ही सम्प्राप्ति नही कह सकते' क्योकि ऐसा कहने से सम्प्राप्ति, फिर प्रकाग एव चक्षुरिन्द्रिय के समान ही रोग ज्ञान में सामान्य ज्ञान के रूप मे हो जावेगी। अर्थात् रोग के जानने मे प्रकाश, चक्षु नादि इन्द्रियो का होना परमावश्यक है इसके अतिरिक्त रोगदर्शन के निमित्त व्यवहृत होने वाले विविध साधनो की भी आवश्यकता पड़ती है इन साधनो के समान ही उपाय एक नम्प्राप्ति का भी होगा जिस के द्वारा गेग को जाना जावे । परन्तु चिकित्सा मे प्रकाश, चक्षु तथा रोगदर्शन के साधनो का कोई भी महत्त्व नहीं है, उसी प्रकार सम्प्राप्ति का रोग भी चिकित्मा की दृष्टि से कोई महत्त्व नही रह जावेगा। परिणामस्वरूप सम्प्राप्ति का वर्णन भी अनावश्यक हो जावेगा। क्योकि पच निदान मे तो उन्ही उपागे का कथन अपेक्षित है जिनकी चिकित्सा में उपादेयता हो, निदान-पूर्वरूप-त्पादि अन्य रोग विनानोपायो का रोगनापक होने के माथ-साथ मतिम एव परम प्रयोजन चिकित्सा विगेपही स्वीकार किया गया है । इसके अतिरिक्त यह भी कोई नियम नहीं कि उत्पन्न वस्तु का ही ज्ञान हो क्योकि मेवदर्शन से भावी वर्षा का ज्ञान के समान अनुत्पन्न व्याधि का निदान, पूर्वत्प आदि के द्वारा, जैसा कि ऊपर सिद्ध किया जा चुका है, व्याधि का ज्ञान सभव रहता है। जात का अर्थ जन्मयुक्त मानते हैं, वर्पा भावी होते हुए भी जन्मावच्छिन्न ही है अर्थात् भावी जन्मयुक्त है। इसो निमित्त उसका पूर्वरूपो से ज्ञान करना सभव भी रहता है । जिस वस्तु का त्रिकाल में ( भूत-भविष्य या वर्तमान मे ) जन्म नही होता उसका जानना भी संभव नहीं रहता। इसलिये जन्म भी ज्ञान मे कारण होता है। तव भी व्याविजन्म को सम्प्राप्ति मानना ठीक नही है अन्यथा जन्म के समान चक्षु आदि को भी कारण स्वीकार करना पड़ेगा क्योकि उनके विना भी व्यावि का पूर्ण ज्ञान नही होता है। बस्तु सम्प्राप्ति का लक्षण केवल 'व्याधिजन्म एवं सम्प्राप्ति' इतना ही करना पर्याप्त नहीं होगा प्रत्युत सम्प्राप्ति का निर्दृष्ट लक्षण इस प्रकार करना होगा-'तस्माद् व्याविजनकदोपव्यापारविओपयुक्तव्याधिजन्मेह सम्प्राप्तिरिति
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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