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भगवान पार्श्वनाथ । कलहंस-अरे, मालूम पड़ता है किसी व्याधिने आकर आपको घेर लिया है। बस, मुझसे परहेज न कीजिये। अपना हाल निसकोच हो कहिये जिससे औषधोपचारकी व्यवस्था की जाय ! मित्रोंका कार्य ही यह है कि वे काम पड़े पर एक दूसरेके काम आवें ! आपकी मुरझानी सूरतने मुझे पहले ही खटकेमें डाल दिया था । कहिये, क्या हाल है ?
कमठ-मुझे शारीरिक व्याधि तो कुछ ऐसी है नहीं और न .मानसिक ही ! पर है वह ऐसी ही कुछ । कैसे कहूं सग्वे, मेरा हृदय तो इठा जा रहा है।
कलहंस-आरिवर कुछ कहोगे भी-क्या वजह है क्यों हृदयमें गेठा पडा है ?
कमठ-हा, भाई कहूगा, तुम्हारे बिना मेरी रक्षाका उपाय और कौन करेगा ? लेकिन तुम्हें करना जरूर होगा।
कलहंस-इसके कहनेकी भी कोई जरूरत है। मित्रताके नाते आपको सुख पहुचाना मेरा कर्तव्य है ।वम, आप अपनी व्याधिका कारण बतलागे।
क्मठ-क्या कह कलइस' कहते हृत्य लगाता है पर कामकी ज्यथा मुझे उस समय दारण दुख दे रही है । प्यारी विसुन्दरीके रुप-सुराका पान करने से ही यह व्यथा दूर होगी ।..
परम-लि, लि. तुम्हारी बुद्धि कहां गई है ? लघु भ्राताकी पत्नी पुत्रीयन् होती है, उमीपर तुमने अपनी नियत बिगाडी है। या, मगर है। म दुहिको छोरो। कोई सुन पायेगा तो तुम्हारे लिये मुदिमानेो म्यान नहीं रहेगा। पग्दागका माथ बहन