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पुरोहित विश्वभूति ।
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स्थामें तकलीफ नहीं दूंगा । तुम्हारी आत्माका हित होगा वही उपाय करूंगा । तुम चाहो तो आनन्दसे पुत्रोके, साथ, रहो और धर्म ध्यान करो ! अगर मेरे बिना यह घर फीका जंचने लगे तो दिगंबर गुरुके चरणोंके प्रसादसे आत्मकल्याण करनेका मार्ग ग्रहण कर लो ! देखो राजकुमारी राजुलने तो कुमार अवस्था में ही आर्थिकाके व्रत धारण किये थे और दुद्धर तपश्चरण करके स्त्री लिंग छेदकर स्वर्गौमे देवोके अपूर्व सुखोका उपभोग किया था ! सो अब जैसी तुम्हारी इच्छा हो ।
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अनृदरि पतिदेव के इन मार्मिक वचनोंको सुनकर चुप होगई ! उसकी बुद्धि में ऊहापोहात्मक विचारोकी आंधी आगई ! जान गई कि मनुष्यका नरजन्म सफल बनानेके लिये मोक्षसाधनका उपाय करना परमोपादेय कर्तव्य है ! इसी कारण वह पतिदेव के निश्चयमें और अधिक बाधा डालने की हिम्मत न कर सकी ।
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प्रिय पाठकगण, यह आजसे बहुत पुराने जमानेकी बात है । इतिहास उसके आलोक में अभी पहुंच नहीं पाया है ! पर है यह इसी भरतक्षेत्र की बात ! इसी भरतक्षेत्र के आर्यखडमें सुरम्य देशके मनोहर नगर पोदनपुर में यह घटना घटित हुई थी । यह पोदनपुर बड़ा ही समृद्धशाली नगर शास्त्रोंमें बतलाया गया है । यहा जैनधर्मकी गति भी विशेष बताई गई है। यहांके राजा परम नीतिवान नृप अरिविद थे। इन्हीं राजाके वयोवृद्ध मंत्री पुरोहित विश्वभूति था । अनूदर इनकी पत्नी थी । वृद्धावस्थाको निकट आया जानकर इस विवेकी नर - रत्नने आत्मध्यान करना इष्ट जाना था ! इसी अनुरूप अपनी पत्नीको समझा बुझाकर उसने जिनदीक्षा ग्रहण करनेकी