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पुरोहित विश्वभूति |
[ ३ संदेशा ही ले आया ! मोक्ष- सुंदरी मन वसी है ! अच्छा है, जाओ! लेकिन उसे पाना कुछ हंसी ठठ्ठा नहीं है । इसलिए मैं तो यही कहूंगी कि अभी कुछ दिनों और घरमें रहकर संयमी जीवन व्यतीत करने का अभ्यास करलो ! जिनदीक्षा ग्रहण करना दुर्बर कठिन मार्ग में पग बढ़ाना है, सो विचार लीजिए ।
विश्व० - प्रिये ! मैं देखता हूं, तुम मोहके गहरे भ्रम में पड़ी हुई हो। तुम्हारे ममता भाव मुझे छोडना नहीं चाहते ! संसारी जीवकी ऐसी ही भ्रमालु बुद्धि है । इसी कारण वह संसार में अनेकों दुःख उठाता है | चाहता है, बालूको पेलकर तेल निकालना ! लेकिन क्या यह साध्य है ?
अनु०-नहीं साहब, यह कुछ भी साध्य नहीं है ! सारी दुनिया बेवकूफ है, गार्हस्थ्य जीवनमें रहना बुरा काम है । जाइये, मैं नहीं रोकती - आप बाबाजी बन जाइये और सारी दुनियांको बना लीजिये। मेरी बला से - तब ही कुछ पतेकी मालूम पड़ेगी ! मेरा कहना तो मूर्खोका बकवाद समझते हो, पर जब दुनियां जो संसारमे रहकर आनंद उठा रही है आपको टकासा जवाब देदेगी तब होश लाइयेगा ! विश्व० - अरे, इसमें कौनसी बात बुरे माननेकी है । मैं तो खुद कहता जाता हूं कि संसारके लोग भ्रममे पड़े हुये हैं । जैसे कुत्ता हड्डीको चूस २ कर अपने मुंहको लहूलुहान कर लेता है, वैसे ही यह ससारी प्राणी दुनियांकी मौज शौकमे फंसा हुआ अपना सत्यानाश करता है । सुख पानेकी लालसासे खाना पीना मौज उड़ाना आवश्यक समझता है, परन्तु वास्तवमे इस मार्ग से वह कभी भी सच्चे मुखको नही पाता ' कुतेकी तरह अपनी ही
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