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[ १] चक्रवर्ती राना हुये बताये गये है। पद्मा हरणकी कथा बहुत कुछ संस्कृतके शकुन्तला नाटककी वार्तासे मिलती जुलती है । दिगम्बर शास्त्रोंमें यह कुछ भी उल्लेख नहीं है। इसके स्थान पर उनमें आनन्द राजाको पूजा करते और उनके सूर्यविमानस्थ मदिरोंकी पूना करनेसे 'सुर्य पूना' का प्रारम्भ होता लिखा है । आनन्दके मुनि होनेपर कमठके जीव शेरने उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी थी। वे भौतिक शरीर छोड़कर आनत स्वर्गमें देव हुये । श्वे. शास्त्र स्वर्णवाहुके मुनि होने और शेर द्वारा मारे जानेको तो स्वीकार करते हैं, परन्तु उन्हें महाप्रभा विमानमें देव होते लिखते हैं। यहांसे चयकर यह जीव इक्ष्वाक्वंशी राजा अश्वसेन और रानी वामाके यहां बनारसमें श्री पार्श्वनामक राजकुमार होते हैं, यह बात दोनों संप्रदायके शास्त्र स्वीकार करते हैं। किन्तु श्वे. शास्त्र में जो उनका पार्श्व नाम इस कारण पड़ा बताया है कि उनकी माताने अपने 'पार्श्व' (बगल में एक सर्पको देखा था, दिगंबर शास्त्रोंके कथनसे प्रतिकूल है। उनमें इन्द्रने भगवानका चमकता हुआ पार्श्व देखकर उनका नाम पार्श्व रक्खा था, यह लिखा है । दि. शास्त्र उनके विवाहकी वार्तासे भी सहमत नहीं हैं। श्वे. शास्त्रमें कमठके जीवको नर्कसे निकलकर रोर नामक ब्राह्मणका कठ नामका पुत्र होते बतलाया है। पर दिगबर शास्त्र कहते हैं कि कमठका. जीव नर्कमेंसे निकलकर संसारमें किचित रुलकर महीपालपुरकाः राजा महीपाल हुआ, जो भगवान पार्श्वनाथका इस भवमें नाना था। इसप्रकार पार्श्वनीके अंतिम संसारी जीवनमें कमठसे उनका सम्बंध पुनः उनके प्रथम भव जैसा होजाता है। आखिरमें दोनों