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तपस्या करता रहा। श्वेतांबराचार्य अगाडी बजनाभिको जन्मसे मिथ्यात्वी और साधु लोकचंद्र द्वारा सम्यक्त्वी लाभ करते बतलाते हैं । वह उसके पुत्रका नाम शक्रायुध कहते है। दिगम्बर शास्त्र उनको जन्मसे जैनी बतलाते और उनके पुत्र का नामोल्लेख नहीं करते हैं । वजनाभिका जन्मस्थान श्वेतांवर शुभंकरा नगरी वतलाते और उनकी माताका नाम लामीवती और स्त्री विजया बताते हैं। दि० शास्त्रोंमें जन्मस्थान अपर विदेहके पद्मदेशका अश्वपुर और उनकी माता व पत्नीके नाम क्रमश विजया और शुभद्रा प्रगट करते है । श्वेताम्बर शास्त्र कुरगक भीलको ज्वलन पर्वतमें रहते बताते है । दिगम्बर शास्त्रोंमें ज्वलन पर्वतका कोई उल्लेख नहीं है। वजनाभिकी कुरग भीलके हाथसे मृत्यु हुई बताकर श्वे० शास्त्र उसे ललिताग स्वगमें देव होते और वहांसे चयकर सुरपुरके राजा वज्रबाहुकी पत्नी सुदर्शनाके गर्भमें आते लिखते हैं। इनकी कोखसे, जन्म पाकर वह उसे स्वर्णबाहु नामक चक्रवर्ती राजा होते लिखते है किंतु दिगम्बर शास्त्रोंमें वचनाभिको चक्रवर्ती बताया गया है । इस भवमें तो मरुभूतिका जीव मध्यम ग्रैवेयिकसे चयकर आनन्द नामक महामण्डलीक राजा हुआ था, यह दिगंवर शास्त्र कहते है । किंतु दोनों सम्प्रदायके ग्रथोंमें इनके पिताका नाम बत्रबाहु ही है । दिगम्बर शास्त्र इनको अयोध्याका राजा बताते है और इनकी रानीका नाम प्रभाकरी लिखते है। श्वे. शास्त्र यह भी कहते है कि स्वर्णबाहुको एक दफे उनका घोड़ा ले भागा और वह साधुओंके एक आश्रममें पहुंचे। वहां रत्नपुरके विद्याधर रानाकी कन्या पद्मापर वह आसक्त हुये और उसे ले भागे । इस पद्माके सम्बंधियोंकी सहायतासे वह