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[६२] चरित (२।६३) में वज्रघोष गजराजको सहबार स्वर्गमें स्वयंप्रभ देव होते लिखा है, किंतु वादिराजसूरिने उसे महाशुक्र स्वर्गमें शशिप्रभदेव लिखा है । (३।१०८) इन्होने लोकोत्तमपुरके राजाका नाम विद्युद्वेग और उसके पुत्रका नाम रश्मिवेग लिखा है (४१२७); परंतु उत्तरपुराण (७३।२४-२५), सकलकीर्तिनी (२।१०), चंद्रकीर्तिजी (२।१३०) और भूघरदासनी (२१६९-७१)ने राजाका नाम विद्युत्गति और पुत्रका नाम अग्निवेग बताया है । चन्द्रकीर्तिजीने पिताकी आज्ञानुसार अग्निवेगका किमी विद्याधरसे संग्रामकरनेका भी उल्लेख किया है। (६१४) वादिरानमूरिनीने विजया रानीके सवको विजय करनेवाला दोहला होने लिखा है। (४१२-१४) उत्तरपुराणमें न दोहला है और न स्वप्नोंका जिक्र है (७३।३१-३२)। किन्तु शेप सबमें स्वप्न देखनेका उल्लेख है। वादिरानजीके ग्रन्थमें वचनाभि चक्रवर्तीको सुखा वृक्ष देखकर विरक्त होते और मकर मुनिके पास जाने लिखा है ( ८1७२-७३ ) किन्तु उत्तापुराण (७३-३४), सकलकीर्तिनी (६/३), चन्द्रकीर्तिनी ( ६१२-४ )
और मृघग्दापनी (३।७४)ने उनको खेमकर मुनिका उपदेश सुनकर विरक्त होते बनाया है। अगाडी सक्कलकीर्तिनी (५१९४), चंद्रकीर्तिनी (६८८-९०) और भृधरदासनीने (३३१०७) वजनाभि मुनिको वनमें रहने हुये कुरङ्ग भील द्वारा उपमर्गीस्त होते लिखा है । परन्तु पार्श्वचरित (८,८०)में वनके स्थानपर विपुलाचल पर्वत बताया है और उत्तरपुराणमें (७३।३८) वन और पर्वत किसीना भी उल्लेख नहीं है । अगाडी वादिराजमुरिजी राजा आनंदको निनयज्ञ (जिनेन्द्र पूना) करते और मुनि आगमन हुआ बतलाते हैं।