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है औ उपेक्षा करने योग्य है । किन्तु इसपर भी उसको प्रगट कर देना साहित्यिक स्पष्टता के लिये आवश्यक है । अतएव उस ओर दृष्टि डालने पर हमें पहले ही भगवान् पार्श्वनाथनीके प्रथम भवांतर वर्णनमें अन्तर मिलता है । श्री गुणभद्राचार्य, सकलकीर्ति, 1 चंद्रकीर्ति, (१।११५ - ११७) और भूधरदास (१ - १०२) कृत ग्रन्थोंमें कमठके भाई मरुभूतिको उसकी खबर किसी राह चलते भीलसे पाने का क्रि नहीं है; परन्तु वादिराजसूरिजी के ग्रन्थ में (सर्ग २ श्लो० ६३-६४ ) यह विशेषता है । श्री जिनसेनजी के 'पाश्वभ्युदय काव्य ' में पूर्वभवों का उल्लेख वर्तमान रूपमें है । अगाड़ी अरविदगज के मुनि समागमका उल्लेख प्रायः सबमें मिलता है; परंतु वादिगजसुरजीके ग्रन्थमें उन मुनिगजका नाम 'स्वयंप्रभ" और उनके आगमन की सूचना मालीद्वारा राजापर पहुंचानेका विशेष उल्लेख है । (म० २ श्लो० १०२) मरुभूतिकी मृत्यु उपरांत सलकीवन में हाथी उत्पन्न होनेका उल्लेख भी सबमें है; कितु वादिराजसूरिजी के ग्रथमें यहां भी विशेष रूपमें उस हाथी के माता पिताका नाम वर्नरी और पृथ्वीघोष लिखा है (स० २ श्लो० ३८-३९ ) फर राना अरविंदके मुनि होजानेपर, उन्हें एक वैश्यसंघके साथ नार्थीको वन्दना निमित्त जाते हुये और सल्लकी वनमें श शगुन आद श्रावकोंको उपदेश देते, इस ग्रन्थमें लिखा है । (स० ३ श्लो० ६१ - ६५) किन्तु सकलकीर्तिजी (२/१६१७), गुणभद्राचार्यजी (७३|१४) चंद्रकीर्तिनी ( २४/२ ) के ग्रन्थों में उन्ह सघ सहित श्री सम्मेद शिखरजीकी यात्राके लिये जाते लिखा है । उत्तरपुराण (७३/२४), सकलकीर्तिजीके पार्श्व