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पूर्वघर ३५०, ३०. सिप्य १०९०० ३१. अवधिज्ञानी १४४, ३२. केवलज्ञानी १०००, ३३. मन पर्यय ज्ञानी ७५०, ३४.. वैक्रियक १०००, ३५. वादिन् ६००, ३६. उग्रवंश, ३७. राजा सहतप, ३००, ३८. राजा सहमोक्ष ३६, ३९. सिद्धपेत्र सम्मेदगिरि, ४०. लांछन धरणेन्द्र, ४१. जिनांतर वर्षे २५०, ४२. हीन ॥०, ४३. अनुबंधकेवली ३, ४४, संततकेवली ॥३, ४५. अर्जिका ३८०००, ४६. श्रावक १०००००, ४७. श्राविका ३०००००, ४८. जती सिद्धगति ६२००, ४९. अनुत्तरगत ८८००, ५०. सौधर्म अनुत्तरगत १०००, ९१. वृक्षनाम घव'लसर, ५२. वृक्षउच्च घ० १०८, ५३. पारणादिन ३ पाष, ५४.. नगरी द्वारा वहपुरी, १९. दानपति धनदत्तु, १६. चरु गोपीरं, ५७. रत्नवृष्टि १८. नक्ष घरणेंद्र, ५९. जक्षणी पद्मावती, ६०. मोक्ष श्रावण शु. ७, ६१. मोक्षासन बैठो, ६२. योगव्यान मास १ । "
इस प्रकारका यह साहित्य है जिसमें भगवान पार्श्वनाथजीकी जीवन घटनायें संकलित हैं । इन एवं अन्य श्रोतोके आधारसे ही हमने भी प्रस्तुत ग्रंथकी रचना की है । इस साहाय्यके लिये हम इन सब ग्रन्थकारोंके अतीव कृतज्ञ हैं । किंतु यहां पर यह देख लेना भी समुचित है कि क्या इन सब मन्थोंमें एक समान ही कथन है अथवा उसमें कुछ अंतर भी है । यह तो मानना पड़ेगा कि भगवानका जीवन चरित्र एक ही रूपका रहा होगा। उनके जीवनकी एक ही घटना
चरित्र ग्रंथोंमें परस्पर अन्तर क्यों है ?