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[५४] मूल संस्कृत और हिन्दी टीका स० । मुद्रित अप्राप्य है । प्रसिद्ध जैन भंडारोंमें ह० लि० मिलता है।
४. पार्श्वनाथपुराण-(मूल सं०) भ० चन्द्रकीर्ति ग्रथित (सं० १६५४) ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन वंबई और जैन मंदिर इटावा आदिमें प्राप्त है।
५. पार्थाभ्युदय काव्य-श्री जिनसेनाचार्य (६५८-६७२ ई०) मूल और संस्कृत टीका सहित बंबईसे मुद्रित होचुका है।
६. उत्तरपुराण-श्री गुणभद्राचार्य (७४२ ई०) मूल संस्कृत और हिन्दी अनुवाद सहित इन्दौरसे प्रकट होचुका है।
७. पार्श्वपुराण-(सं०) वादिचंद्र प्रणीत ऐलक पन्नालाल सर.. स्वती भवनकी चतुर्थ वार्षिक रिपोर्टके ट० ९ (ग्रन्थसूची) पर इसका उल्लेख है । (सं० १६८३)
८. उत्तरपुराण-प्राकृत (अपभ्रंश) में श्री पुष्पदत कविद्वारा प्रणीत (९६५ ई.)।
९. पार्श्वपुराण-प्रा० (अपभ्रंश) पद्मकीर्ति विरचित । समय अज्ञात । इसकी एक प्रति सं० १४७३ फाल्गुण बढी ९ वुद्धवारकी लिपि की हुई कारआके भंडारमें है।
१०. पार्श्वनाथपुराण-छदोवड हिन्दी-कविवर भूधरदासजी कृत । (सं० १७८९) वंबईसे मुद्रित हुआ है।
११. उत्तरपुराण-छंदोबद्ध हिन्दी कवि खुगालचदकत । (सं० १७९९)।
१२. पार्श्वनीवन कवित्त-(हिन्दी) अलीगंज (एटा) के जैन मंदिरके एक गुटकामें अपूर्ण लिखे हुए हैं।