________________
[ ५३ ]
अंग्रेजी अनुवाद अपनी विस्तृत भूमिका और टिप्पणियों सहित प्रकट किया है । यह " Life and Stories of Jaina Saviour Parshvanatha " नाम से सर्वत्र प्रचलित है । दूसरा उल्लेखनीय ग्रन्थ जर्मन भाषा में " Der Jainismus " नामक है । इसके रचयिता बरलिन विश्वविद्यालय के प्रख्यात् विद्वान् प्रा० डॉ० हेल्मुथ वॉन ग्लासेनाप्प हैं । आपने जैनधर्मका परिचय लिखते हुये, भगवान पार्श्वनाथजी के जीवनपर भी प्रकाश डाला है । इनके अतिरिक्त विदेशो में प्रकट हुई जैनधर्म सम्बंधी पुस्तकों में इनका उल्लेख सामान्य रूपसे भले ही हो, पर विशेष रूपसे नहीं है । इधर भारतीय साहित्य में भगवान् पार्श्वनाथनीके सम्बन्धमें दिगम्बर और श्वेतावर जैनोंके साहित्य ग्रन्थ हैं | श्वेताम्बर जैन अपने कल्पसूत्र आदि ग्रन्थोको मौर्यकालीन श्री भद्रबाहु स्वामीकी यथावत् रचना मानते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं जंचता । प्रत्युत यह कहना पडेगा कि यह क्षमाश्रमणके समय या उनसे कुछ पहलेकी रचनायें हैं; जब कि यह लिपिबद्ध हुई थी । अस्तुः अबतक हमारे ज्ञानमें इस विषयके निम्न ग्रन्थ आये हैं:
-
दिगम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थ |
१. प्रथमानुयोग - ५००० मध्यम पद ( अर्धमागधी ) महावीरस्वामी द्वारा प्रतिपादित ( अप्राप्य ) |
२. पार्श्वनाथ चरित - श्री वादिराजसूरि प्रणीत् (८६९ ई०) यह माणिकचन्द्र ग्रन्थमालामें मूल संस्कृत और जैन सि०प्र० संस्था कलकत्ता द्वारा हिन्दी अनुवाद सहित प्रकट हो चुका है ।
३. पार्श्वनाथपुराण - श्रीसकलकीर्ति आचार्यकृत (सं० १४९५ )