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द्विनौने चतिरिक्त वन्य पदार्थ लोग भी सनिलित है। नेते कि जेनाने बदलः क्षेतुने वता, क्षत्री, वैप इन लोन तरहले इत्येंना भिग ही है। बाद कि नयनतना उद्देश्य वेदोंने दिल्ड हुप्रचार अनेचा था तो वह नितान्त पयर है कि वे ऐसी नासाने माने सिद्धान्तों प्रगट करते जो सरल
और जनप्रिय होतो। सचमुच ब्रात्याची भाश जैनोंच्ने प्रस्त मामाने सनान हो घो क्योंनि उनले विश्व हा गया है कि'जो बोल्ने सुगन है उसने दे ३ठिन उसलाते हैं।' (बदुल्चन वायन दुत्पन् नाहः) इस देतसे साफ जाहिर हैलिये संस्कृत नहीं गेलते थे । बतएव इस सजनत्यसे भी प्रात्यों का जैन होना सिद्ध है । नबनाल्ने भी जैन लोग 'प्रती ( Terteis) नामसे परिचित थे।* ब्राह्मण ग्रंथाने प्रात्योंन उडेल गरगिर' रूपमें भी हुना है;
जिसका अर्थ सायण उन लोगोसे करता 'गरगिर' शब्द भी है जो विष भक्षण करते थे । ब्राह्मणके व्रात्योंको जैन मूल श्लोकके साथ यह व्याख्या-वाक्य मूचक है। भी है कि"ब्रह्मदयं जन्य भन्नुम अदंति!"
सारण इसके मर्य करता है कि "वे ब्राह्मणोंके लिये खास तौरसे बनाये गये भोजनको खाते हैं।" लात्यायन मुत्रोंके टीकाकार अग्निस्वामी लिखते हैं कि "गरगिर व एते ए ब्रह्मा जन्ममंत्रम् अदति ।" सचमुच यहां कुछ गड़बड़
• नरीश्वर और सत्राट्, पृ. ३९८-३९९ और डिक्लिपशन सॉफ एमिया पृ० १९५६ २१३ ।