________________
[२९] वीं शताब्दिमें हुआ बतलाते हैं। किन्तु जो हो, इससे यह स्पष्ट है कि वैयाकरण शाकटायन ऋग्वेदके प्रतिशाख्योंके पहले होचुके थे और इस दशामें भी जैनधर्म बहु प्राचीन सिद्ध होता है। हिन्दुओंके पुराण ग्रन्थोंसे भी जैनधर्मकी प्राचीनता स्वयंसिद्ध
है। उनके सर्व प्राचीन विष्णुपुराणमें हिन्दुपुराणोंमें जैन- जैन तीर्थंकर सुमतिनाथका उल्लेख है। धर्मकी साक्षी। तथापि उसमें जैनधर्मकी उत्पत्ति देव
और असुरोके युद्धके परिणाम स्वरूप स्वयं विष्णुके शरीरसे उत्पन्न मायामोह नामक पुरुषके द्वारा बहु प्राचीनकालमें हुई बतलाई गई है । मायामोह मुण्डे सिर, नग्नरूप, हाथमें मयूरपिच्छ लिये और तपस्या करते नर्मदा तटपर अवस्थित असुरोंके आश्रममें पहुंचे और उनको जैनधर्मरत किया, यह भी इस पुराण में लिखा है । यह असुर 'माईत' कहलाये। (देखोबंगाली आवृत्ति, अंश ३ अ० १७-१८), भागवतपुराणमें जनधर्मके प्रणेता श्री ऋषभदेवजीका विशेष वर्णन है। उनको वहां २२ अवतारोंमे आठवां बतलाया है। उनकी वंशपरम्परा सम्बंध लिखा है कि १४ मनु हुये, जिनमें स्वयंभू मनु पहले थे। ब्रह्माने जब देखा कि मनुष्य संख्या नहीं बढी तो उसने स्वयंभूमनु और सत्यरूपाको पैदा किया और सत्यरूपा स्वयंभूमनुकी पत्नी हुई। प्रियव्रत नामक पुत्र हुआ, जिसके आग्नीन्ध और उसके नाभि हुये । नाभिका विवाह मरुदेवीसे हुआ और इनसे श्री ऋषभदेव १-हिन्दी एण्ड लिट्रेचर ऑफ जैनीज्म पृ० १० १२-इन्डियन एसीक्वेरी भा० पृ०१:३।