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-महाभाप्यमें शाकटायनका प्रमाण दिया है। शाकटायनके बनाये हुये उणादि सूत्र वैयाकरणोमें भलेप्रकार प्रचलित हैं। शाकटायनका नाम ऋग्वेदके प्रातिशाख्य, शुक्लयजुर्वेद और यास्कके निरुक्तमें भी आया है। बोपदेवके 'कवि-कल दुर' में नहा आठ प्रसिद्ध बयाकरणों का वर्णन है उनमें शाकटायनका भी नाम है। इनमेसे केवल इन्द्रका ही नाम शाकटायनने अपने व्याकरणमें लिया है। शान्टायनके बनाये हुये शब्दानुशासनके हरएक पाठके शुरू में यह वाक्य है-"महाश्रमण संघाधिपतेः श्रुतकेवलिदेगीचार्यत्य शाकटायनस्य' इससे स्पष्ट है कि शाकटायन जैन मुनि थे । २ इनके 'उणादिमत्र' में " इण सिज जिदीडप्यवियोनक सत्र २८९ पाद ३ है: जिसका अर्थ सिद्धांतकौमुदीके कर्ताने 'निनोर्हन्' किया है। इसका भाव जैनधर्मके संस्थापकसे है क्योंकि हिन्दू ग्रन्थोंमें जैनधर्मके संस्था‘यकका उल्लेख सर्वत्र 'जिन' व अर्हन' रूपमें किया गया है। यह शाकटायन निरुक्तिके कर्ता यास्कके पहिले हुये थे और यास्क पाणिनिसे कितनी ही शताब्दियो पहले हुए, जो महाभाष्यके कर्ता पात- ‘जलिके पहले विद्यमान थे। अब पातलिको कोई तो ईसासे पूर्व २री शताब्दिका बताते है। और कोई ईसासे पहले ८वी या २०
किन्तु अव किन्हीं विद्वानोंका मत है कि प्राचीन शाकटायन जैन नहीं ये । जैन शाकटायन तो गष्टकट वयी राजा अमोघवर्पके समयमें हुए वताए जाते है।
१-इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः । ___ पाणिन्यमरजनेन्द्रा. जयन्त्यष्टादिशान्दिका ॥' २-जिनेनमत दर्पण भा० १ पृ. ५-६ । ३-जैन इतिहास सीरीज भा० १ पृ. १३-१४ ।